वीरान हो गया राजनीति की तपस्थली-भोंडसी आश्रम -- -पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने राजनीति के चिंतन-मनन के लिए किया था स्थापित
-कभी भोंडसी स्थित भारत यात्रा केन्द्र पर नेताओं का लगा रहता था जमावड़ा
-यह खबर हमारे मिश्र व वरिष्ठ पत्रकार पंकज मिश्रा ने दैनिक भास्कर में लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान लिखी थी। आज तुर्क नेता की कमी खल रही है।
नई दिल्ली
गुडग़ांव जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर की दूरी पर अरावली पहाड़ी की गोद में स्थित है भारत यात्रा केन्द्र का आश्रम। यह आश्रम भोंडसी गांव में है। इसे राजनीति की तपस्थली भी कहा जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस वीरान जगह को तीन दशक पहले एक तरह से अध्यात्म व राजनीति के चिंतन मनन के लिए तपस्थली बना दिया था। कभी यहां से प्रदेश व देश की राजनीति को नियंत्रित किया जाता था। लेकिन आज यह वीरान है।
पहले चुनाव में यहां छोटे-बड़े नेताओं का रेला लगा रहता था। अब ऐसा नहीं है। आश्रम की विरानी कभी-कभार मंदिर में माता भुवनेश्वरी के दर्शन के लिए आने वाले लोगों की गाडिय़ों की धड़धड़ाहट से दूर होती है। अब नेता नहीं आते हैं। लेकिन कभी-कभार अपने नेताजी की जीत की कामना के लिए उनके समर्थक मंदिर में माथ टेकने आ जाते हैं। मंदिर के अधिष्ठाता कमलदेव स्वामी कहते हैं कि पहले यहां राजनीति व अध्यात्म से संबंधित लोगों का जमावड़ा रहता था। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर में राजनीति के साथ अध्यात्म की गहरी समझ थी। जब भी वह यहां आते हवन जरूर करते।
बड़े नेताओं की लगती थी चौपाल-
इस आश्रम में बड़े नेताओं की चौपाल लगती थी। चुनाव और राजनीति की समस्याओं पर चिंतन मनन किया जाता था। पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल से लेकर जयप्रकाश आंदोलन से जुड़े सभी नेता यहां आते थे। विधानसभा हो या लोकसभा का चुनाव। चुनावी घोषणा होते ही यहां टिकट के इच्छुक उम्मीदवार डेरा जमा लेते थे।
खंडहर में तब्दील हो रहे हैं बंगले-
ज्यादातर बंगलों की स्थिति जर्जर हो चुकी है। इलाका सुनसान पड़ा हुआ है। बंगले की तरफ जाने में भी डर लगता है। यहां अलग-अलग नाम से बंगले बनाए गए थे। जो अब खंडहर में तब्दील हो रहे हैं। वरूण नाम से बने बंगले में बाहर से आए अतिथि ठहरते थे। विशिष्ट अतिथि के लिए बागमती आश्रम बनाया गया था। नरेन्द्र कुटीर में चंद्रशेखर स्वयं रहते थे। जयप्रकाश कुटीर में जब देवीलाल आते तो रूकते थे। सभी की स्थिति काफी दयनीय हो चली है।
भारत यात्रा केन्द्र का इतिहास-
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