Sunday 30 November 2014

बीएमडब्ल्यू-मर्सिडीज बेंज के निर्माण में भांग का उपयोग



-हल्की-टिकाऊपन व पर्यावरण के अनुकूल होने पर दी जा रही तवज्जो
-दवा के निर्माण से लेकर कपड़े तक भी भांग के पौधे से हो रहे तैयार
बलिराम सिंह, नई दिल्ली

दुनिया की महंगी गाडिय़ां बीमएडब्लयू और मर्सिडीज बेंज जैसी गाडिय़ों में विंडो-डोर के निर्माण के लिए भांग का उपयोग हो रहा है। इसके उपयोग से जहां विंडो-डोर काफी हल्की होती है, वहीं अत्यधिक मजबूत होती है। भांग का उपयोग न केवल इन महंगी वाहनों में किया जा रहा है, बल्कि कई गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए बनने वाली दवाइयों में भी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है।
हालांकि यह अलग बात है कि हमारे देश के आम शहरी जनमानस भांग को केवल नशीला पदार्थ के तौर पर ही जानता है। शनिवार को पहली बार औद्योगिक भांग (इंडस्ट्रीयल हेंप) को बढ़ावा देने के लिए इंडिया हैविटेट सेंटर में आयोजित सेमिनार में विशेषज्ञों ने इसकी उपयोगिता की जानकारी दी। विशेषज्ञों ने बताया कि बीएमडब्ल्यूए और मर्सिडीज बेंज जैसी महंगी और लक्जरी गाडिय़ों में इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है। इंडियन इंडस्ट्रीयल हेंप एसोसिएशन के एक्जिक्यूटिव डाइरेक्टर रोहित शर्मा का कहना है कि विंडो-डोर का निर्माण भांग के पौधे के छाल से किया जाता है। यह पर्यावरण के अनुकूल होता है और हल्का एवं टिकाऊपन होता है। उन्होंने बताया कि देश में फिलहाल औद्योगिक क्षेत्र में उपयोग होने वाली भांग के बारे में किसानों को जानकारी नहीं है। उन्होंने दावा किया कि औद्योगिक भांग में टीएचसी (टेट्रा हाईड्रो केनॉबिनॉल) की मात्रा एक फीसदी से कम होता है, जो कि नशीले पदार्थ के दायरे में नहीं आता है, जबकि सामान्य भांग के पौधे में टीएचसी की मात्रा 3 से 15 फीसदी होता है।
यह पौधा तीन महीने के दौरान 9 से 12 फीट का हो जाता है और साल में दो बार इसे उगाया जा सकता है।
2000 रुपए का शर्ट-
सेमिनार में भांग के पौधे से बने शर्ट भी दिखाया गया। शर्ट की कीमत लगभग 2000 रुपए है। इसी तरह भांग के पौधे से निर्मित जींस भी प्रस्तुत किया गया था। विशेषज्ञों का कहना है कि 2-3 एकड़ में क्षेत्र में उगाए गए कॉटन के बराबर एक एकड़ क्षेत्र में भांग का पौधा उगाया जा सकता है।
दवा का निर्माण-
इसका उपयोग आर्थराइटिस, एपिलेप्सी (मिर्गी) जैसी बीमारियों के इलाज के लिए तैयार होने वाली दवाइयों में उपयोग किया जाता है। इसके अलावा प्रोटिन पॉवडर भी बनाया जाता है, जो कि ओमेगा-3,6 और 9 का स्रोत है। भांग का उपयोग खाद्य तेल, आटा, साबुन, शैंपू और लोसन बनाने में किया जा रहा है। इसके तेल में एमिनो एसिड की मात्रा कुछ ज्यादा होती है।
औद्योगिक उपयोग-खाद्य पदार्थों के अलावा इससे पेपर, कंक्रीट, इंसुलेशन, ईंधन और कार के पुर्जे, धागे, फैब्रिक बनाने में उपयोग किया जा रहा है।

Friday 28 November 2014

यमुना में पाई जाने वाली मछलियों में भारी धातु


-स्वास्थ्य के लिए हानिकारक, दिल्ली रेलवे पुल के पास ज्यादा मात्रा
बलिराम सिंह, नई दिल्ली

यमुना में पाई जाने वाली मछलियों में हैवी मेटल (भारी धातु) बड़े पैमाने पर पाया गया है, जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक है। लुप्तप्राय नदियों के संरक्षण के लिए तैयार हो रहे इंडिया रिवर्स चार्टर के लिए आयोजित चार दिवसीय इंडिया रिवर्स वीक के दौरान पर्यावरण विशेषज्ञ रवि अग्रवाल ने यह खुलासा किया है।
स्टडी के मुताबिक यमुना नदी और हिंडन नदी में बड़े पैमाने पर कैडमियम पाया गया है। सर्वाधिक कैडमियम दिल्ली रेलवे पुल और मथुरा स्थित मॉनिटरिंग स्टेशन पर जांच के दौरान पाया गया है। इसके अलावा नदी में बड़े पैमाने पर लोहा भी पाया गया है। पर्यावरण विशेषज्ञ और टॉक्सिक लिंक के अध्यक्ष रवि अग्रवाल ने बताया कि वर्ष 2013 के दौरान एक स्टडी में पाया गया कि यमुना नदी में पाई जाने वाली मछलियों में भारी धातु है। इसके अलावा वर्ष 2013 में टेरी (द इनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट) की स्टडी में भी पाया गया कि यमुना खादर में उगाई जा रही सब्जियों में हैवी मेटल के मात्रा काफी ज्यादा हैं, जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है।
रवि अग्रवाल के मुताबिक इन धातुओं से न केवल हमारे शरीर को नुकसान होता है, बल्कि हमारा दिमाग भी प्रभावित होता है। कैडमियम के उपयोग से लीवर पर प्रतिकूल असर पड़ता है। 
तैयार हो रहा है इंडियन रिवर्स चार्टर-

लुप्तप्राय हो रही नदियों के अस्तित्व को बचाने के लिए शुरू किए गए चार दिवसीय इंडिया रिवर्स वीक में चार्टर तैयार लगभग पूरा हो गया है। कार्यक्रम के समापन मौके पर पर्यावरण विशेषज्ञों ने इस बाबत केन्द्रीय जलसंशाधन मंत्री उमा भारती को जानकारी दी। चार्टर को फाइनल तैयार करने के बाद इसे केन्द्रीय मंत्री को सौंपा जाएगा। चार्टर को तैयार करने के लिए देशभर के 125 जल विशेषज्ञ, रिसर्चर व अन्य विशेषज्ञ शामिल हुए। यहां पर देशभर की नदियों की वर्तमान स्थिति और उनके भविष्य को लेकर चर्चा की गई। साथ ही इन नदियों के अस्तित्व से होने वाले खिलवाड़ से मानवाजाति और पर्यावरण पर पडऩे वाले प्रतिकूल असर को भी प्रमुखता से रखा गया।

Wednesday 26 November 2014

कुदरती गलती को डॉक्टरों ने सुधारा----- -पेट-लीवर से जुड़ी दो जुड़वा बच्चियों को डॉक्टरों ने किया अलग


-पेट-लीवर से जुड़ी दो जुड़वा बच्चियों को डॉक्टरों ने किया अलग
-देश में पहली बार हुई अनोखी सर्जरी, 6 घंटे तक किया गया ऑपरेशन
मेदांता अस्पताल के डॉक्टरों ने किया चमत्कार
बलिराम सिंह, नई दिल्ली

डॉक्टरों ने एक बार फिर अनोखे ऑपरेशन करके खुद को भगवान का दूसरा रूप साबित कर दिया है। डॉक्टरों ने कुदरती गलती को सुधारते हुए पेट और लीवर से सटी दो जुड़वा बच्चियों को सफलता पूर्वक अलग कर दिया। श्रीनगर की हमीदा (बदला हुआ नाम) के घर में ढाई  महीने पहले दो बच्चियों की किलकारियां तो सुनाई दी, लेकिन दोनों बच्चियों का शरीर एक दूसरे से सटे होने की वजह से परिवार में मायूसी भी छा गई। लेकिन इस परिवार की मायूसी को मेदांता अस्पताल के डॉक्टरों ने दूर कर दिया है। सिर और छाती से अलग दोनों बच्चियों का पेट और लीवर एक था, जिसे 15 नवंबर को डॉक्टरों ने सफल सर्जरी के जरिए अलग कर दिया। डॉक्टरों ने इस तरह का देश में पहला मामला होने का दावा किया है।
ढाई महीने पहले पैदा हुईं सबूरा और सफूरा नामक दोनों बच्चियां ऑम्फेलोपेगस नामक (पेट से जुड़ा और दोनों का लीवर एक ही) समस्या से पीडि़त थीं। हालांकि सिजेरियन पैदा हुईं दोनों बच्चियों का वजन 6 किलोग्राम था, जो कि उनके अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है। डॉक्टरों ने 15 नवंबर को 6 घंटे तक चली लंबी सर्जरी के जरिए दोनों बच्चियों को अलग किया और लीवर के हिस्से को समान भागों में अलग-अलग किया गया। 
चुनौती पूर्ण था आपरेशन-

बच्चियों का ऑपरेशन काफी रिस्की था। ऑपरेशन के दौरान बच्चियों की जान जा सकती थी। दोनों बच्चियों के लिए अलग-अलग जांच टीम और एनेस्थिसिया टीम बनाई गई। इस मामले में बच्चियों को ऑपरेशन के लिए तैयार करना भी एक चुनौती थी, उनका हमेशा एक साथ होना, यहां तक कि खून के नमूने, एक्सरे और स्कैन जैसी बहुत मामूली प्रक्रियाओं के लिए भी उनके लिए विशेष व्यवस्था बनानी पड़ी। इन बच्चियों का चार अलग-अलग जांच करना चुनौतीपूर्ण था। इसके तहत ट्राइफेसिक सीटी स्कैन, एक न्यूक्लियर आइसोटॉप हेपेटॉबिलरी स्कैन, एक हाई रिजाल्यूशन चेस्ट स्कैन और उनकी आंतों का एक अलग डाई स्टडी की गई। अस्पताल की पेडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी एंड लीवर ट्रांसप्लांट की निदेशक डॉ.नीलम मोहन के मुताबिक इस तरह के 80 फीसदी मामलों में बच्चों की जन्म के समय ही मृत्यु हो जाती है और मात्र 20 फीसदी बच्चे ही जीवित रह पाते हैं।
ऐसे की गई सर्जरी-
मेदांता अस्पताल के लीवर इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष व मुख्य लीवर सर्जन डॉ.एएस सॉइन के नेतृत्व में बच्चियों की सफल सर्जरी की गई। डॉ.साइन ने कहा कि सर्जरी के दौरान रक्तस्राव का जोखिम ज्यादा था। अत: इन बच्चियों को रक्तहीन लीवर सर्जरी के जरिए ऑपरेशन किया गया। इस बाबत थ्री डाइमेंशनल स्कैन का सहारा लिया गया।
सबसे पहले सर्जरी के जरिए दोनों बच्चियों को अलग किया गया। इसके बाद दोनों बच्चियों की अलग-अलग प्लास्टिक सर्जरी की गई और उनके पेट की क्षतिग्रस्त हिस्सों को दोबारा जोड़ा गया। इसके अलावा दोनों बच्चियों का बेली बटन (नाभि) भी विकसित की गईं। सर्जरी से पहले खुद डॉ.साइन काफी गंभीर थे। ऑपरेशन में अस्पताल प्रबंधन ने रियायत बरतते हुए मात्र 2 लाख रुपए का खर्च बताया है।
ऑपरेशन के सफल होने पर मेदांता अस्पताल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डॉ.नरेश त्रेहन ने कहा कि इस तरह की यदि इस तरह की समस्या से अन्य बच्चे भी पीडि़त होंगे तो उन्हें भी हम पूरी मदद करेंगे और इलाज करेंगे।
आंकड़े-   
ऐसे मामले- एक लाख पर एक मामला
शरीर से सटीं लड़कियां-चार में तीन मामले
जन्म के समय जीवित होने की संभावना-8 में एक
दोंनो बच्चियों का आकार सामान-5 सौ में एक

Tuesday 4 November 2014

सर्दी में महिलाओं में हार्ट अटैक की ज्यादा संभावना

नई दिल्ली
सर्दी के मौसम में महिलाओं में पुरुषों के अपेक्षा हार्ट अटैक की ज्यादा संभावना रहती है। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ.केके अग्रवाल ने यह जानकारी देते हुए बताया कि विशेष तरह के हार्ट अटैक के मामलों में अस्पताल में पुरुषों के अपेक्षा महिलाओं की दो गुना मौत होती है। इस बीमारी को एसटी-एलीवेशन न्योकार्डियल इनफार्कशन (एसटीईएमआई) कहते हैं।
एक स्टडी का हवाला देते हुए डॉ.अग्रवाल कहते हैं कि हार्ट अटैक के दौरान 14 फीसदी महिलाओं को एस्प्रीन की गोली समय पर नहीं मिलती है। इसके अलावा हार्ट अटैक के बाद अस्पताल पहुंचने के 90 मिनट के दौरान लगभग 13 फीसदी महिलाएं एंजीयोप्लॉस्टी कराने में पीछे रह जाती हैं।