Sunday 19 April 2015

लीवर ट्रांसप्लांट- असमान ब्लड ग्रुप वाले डोनर का भी लीवर हो जाएगा ट्रांसप्लांट


-दिल्ली के -आइएलबीएस में दो मरीजों का हुआ लीवर ट्रांसप्लांट    
-एक मरीज को मिली अस्पताल से छुट्टी 
बलिराम सिंह, नई दिल्ली

यदि आप लीवर के मरीज हैं और आपके ब्लड ग्रुप का डोनर नहीं मिल रहा है तो आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। अब आपके शरीर में असमान ब्लड ग्रुप के डोनर से भी लीवर ट्रांसप्लांट हो सकता है। चिकित्सकों ने एक नई उपलब्धि हासिल करते हुए असमान (भिन्न) ब्लड ग्रुप के डोनर से भी मरीज को लीवर ट्रांसप्लांट तकनीकी इजाद की है। दिल्ली में इसकी पहल शुरू हो गई है। दिल्ली सरकार के यकृत एवं पित्त विज्ञान संस्थान (आइएलबीएस) में हाल ही में दो मरीजों को बेमेल डोनर से लीवर ट्रांसप्लांट किया गया है।
आइएलबीएस प्रशासन के मुताबिक असमान ब्लड ग्रुप के डोनर से दो मरीजों का लीवर प्रत्यारोपण किया गया है। एक मरीज को तीन सप्ताह पहले अस्पताल से छुट्टी दी गई है, जबकि दूसरा मरीज अभी भी अस्पताल में भर्ती है।
प्रत्यारोपण से पहले आवश्यक प्रक्रिया-

आइएलबीएस के मुख्य लीवर प्रत्यारोपण सर्जन डॉ.वी पामेचा के मुताबिक अस्पताल में पहली बार इस तकनीक से लीवर प्रत्यारोपण किया गया है। उन्होंने बताया कि पहले जांच करके यह देखा जाता है कि मरीज और डोनर के रक्त में कितनी भिन्नता है। फिर एक विशेष मशीन के जरिए मरीज के रक्त को साफ करके मरीज व डोनर के रक्त की गुणवत्ता को एक तरह किया जाता है। इसके बाद लीवर प्रत्यारोपण किया जाता है।
लीवर मरीजों के लिए वरदान-

चिकित्सा जगत के इस उपलब्धि से उन लीवर मरीजों को खासा लाभ होगा, जो डोनर के अभाव में दम तोड़ देते हैं। समय पर डोनर नहीं मिल पाने की वजह से अधिकांश मरीजों का लीवर ट्रांसप्लांट नहीं हो पाता है। समान ब्लड ग्रुप का डोनर ढूंढने के लिए मरीजों और उनके तीमारदारों को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। नई तकनीक से डोनर ढूंढना आसान हो गया है।
ट्रांसप्लांट पर 15.50 लाख रुपए खर्च-

आइएलबीएस में लीवर ट्रांसप्लांट के लिए मरीज को 11.50 लाख रुपए खर्च करना पड़ता है। नई तकनीक से लीवर ट्रांसप्लांट में 15.50 लाख रुपए अधिक खर्च होगा। इसके विपरीत निजी अस्पतालों में यह खर्च कुछ ज्यादा ही है। दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में भी नई तकनीक से तीन मरीजों का लीवर ट्रांसप्लांट हो चुका है।

Saturday 11 April 2015

बेमौसम बरसात के दुख में रेणु की याद


एक एकड़ धरती में धान उपजाना, एक उपान्यास लिखने जैसा: रेणु 
गिरीन्द्र नाथ झा, युवा कथाकार 
मार्च के आखिरी दिनों में हुई बे-मौसम बारिश ने खेतों को तबाह कर दिया है। आंखों के सामने गेहूं की फसल को तबाह होते देखा, जवान मक्का को जमीन पर लुढ़कते देखा। आम, लीची के नन्हे फलों को भी धरती पर बिखरते देखा। किसानी करते हुए ही यह जान सका कि मौसम की मार सबसे खतरनाक होती है, क्योंकि यह मार किसानों के सपने उड़ा ले जाती है। किसानी का ‘दुख-राग’ अलापते हुए मुझे अपने प्रिय कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु याद आ रहे हैं। वह किसानी करने वाले लेखक थे। रेणु खेती के अंदाज में लेखन करते थे। एक दफे उन्होंने कहा था, एक एकड़ धरती में धान उपजाना, उपन्यास लिखने जैसा है। लेखन का ही आनंद मिलेगा खेती करने में। साहित्य की तकरीबन सभी विधाओं में बराबर कलम चलाने वाले रेणु भले 38 वर्ष पहले हमसे दूर चले गए, लेकिन अपनी तमाम कृतियों के कारण वह आज भी हमारे लिए जीवंत हैं। रेणु पैदाइशी किसान थे, इसलिए वह किसानों के दर्द को शब्दों में उकेर देते थे। आवरन देवे पटुआ, पेट भरन देवे धान, पूर्णिया के बसैय्या रहे चदरवा तान.  फणीश्वर नाथ रेणु ने जब यह लिखा था, तब पूर्णिया जिले के किसान इन्हीं दोनों (पटसन और धान) फसलों पर आश्रित थे। लेकिन उस वक्त मौसम इस तरह करवटें नहीं लिया करता था। मौसम की मार की वजह से किसानों का मोहभंग नहीं हुआ था।

बे-मौसम बारिश में अपने खेतों को उजड़ते देखने के बाद यह सब लिखते हुए मैं भावुक हो चला हूं, इसके बावजूद किसानी कर रहे लोगों का भरम नहीं तोड़ना चाहता। हम जानते हैं कि हमारे हाथ में केवल बीज बोना है। फसल की नियति प्रकृति के हाथों में है। बारिश की मार से हम हार नहीं मानेंगे, हममें जीवट है। सरकारी मुआवजा हमारे बैंक-खातों में कब पहुंचेगा, यह तो पता नहीं, लेकिन इतना जरूर पता है कि अगली फसल के लिए हमें खूब मेहनत करनी है। मकई के खेतों में पहाड़ी चिड़ियों के प्रवेश पर रोक लगाने के लिए हंडिया को काले रंग से पोतकर फिर से खड़ा करना है। मैं अंखफोड़वा कीड़े की तरह ‘भन-भन’ करता हुआ मक्के के खेतों में उड़ना चाहूंगा, ताकि काले बादल के तेवर को समझ सकूं कि कब बरखा होगी और कब खूब धूप उगेगी। इस कीड़े पर रेणु ने लिखा है- एक कीड़ा होता है अंखफोड़वा, जो केवल उड़ते वक्त बोलता है, भन-भन-भन। क्या कारण है कि वह बैठकर नहीं बोल पाता? सूक्ष्म पर्यवेक्षण से ज्ञात होगा कि यह आवाज उड़ने में चलते हुए उसके पंखों की है। सूक्ष्मता से देखना-पहचानना साहित्यकार का कर्तव्य है। रेणु कम शब्दों में अपनी बात रखते थे। बे-मौसम बारिश में गेहूं-मक्का को गंवाने के बावजूद रेणु के अंचल के किसान टूटे नहीं हैं, क्योंकि उनकी नजर अब अपने उन खेतों पर है, जहां फसलें अब भी लहलहा रही हैं। किसान दुख में भी सुख के अंश खोज लेते हैं।(हिन्दी हिन्दुस्तान से साभार)

पीजी करने के बाद डॉक्टर बन जाएंगी नर्सें -ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी होगी दूर


बलिराम सिंह, नई दिल्ली

देश में डॉक्टरों की कमी अब नर्सें पूरा करेंगी। ये नर्सें न केवल मरीजों की सेवा करेंगी, बल्कि मरीजों की नब्ज टटोलकर उसे दवा भी लिखेंगी और छोटे-मोटे ऑपरेशन को अंजाम भी देंगी। इस बाबत नर्स को दो वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स करना होगा।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले सप्ताह इस योजना को हरी झंडी दे दी। कोर्स को अगले सत्र से शुरू करने के लिए मेडिकल कॉलेजों को निर्देश दे दिया गया है। नर्सिंग का बैचलर कोर्स करने वाली नर्सें इस कोर्स को करने के बाद प्रैक्टिस करेंगी। काउंसिल ने भी कोर्स को स्वीकृति दे दी है। सरकार के इस पहल से नर्सों को डॉक्टरों की तरह मरीजों के इलाज का कानूनी अधिकार प्राप्त हो जाएगा।
फिलहाल देश में नर्सिंग का कोर्स करने वाली नर्सें डॉक्टर की देखरेख में ही कार्य करती हैं। बता दें कि इस तरह की पहल पहले ही यूरोपियन देशों में शुरू हो गई है।
नर्स प्रैक्टिसनर के अधिकार-
-मरीज का इलाज, शारीरिक एवं मानसिक जांच कर सकती हैं
-मरीज की बीमारी का पता लगाने के लिए टेस्ट कराने का निर्देश दे सकती हैं
-दवा लिख सकती हैं
-मरीज को रेफर कर सकती हैं
-छोटे ऑपरेशन कर सकती हैं
मरीजों को लाभ-   
सरकार के इस पहल से ग्रामीण अथवा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर डॉक्टरों की कमी काफी हद तक दूर हो सकती है।