Sunday 30 March 2014

आजमगढ़ में मुलायम का विरोध करेगी उलेमा काउंसिल


बलिराम सिंह
आजमगढ़ में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की घेराबंदी में खुद मुस्लिम संगठन लग गए हैं। राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना आमिर रशदी ने आजमगढ़ में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लडऩे का फैसला किया है। इनके अलावा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अध्यापक संगठन भी आजमगढ़ में मुलायम सिंह का विरोध करने का फैसला किया है।
दिल्ली के बाटला हाउस एंकाउंटर के बाद गठित राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल  के अध्यक्ष आमिर रशदी का कहना है कि मुस्लिम वोटों के बल पर सत्ता में आयी समाजवादी पार्टी ने मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया। उनका कहना है कि मुज्जफरनगर दंगे को रोक पाने में समाजवादी पार्टी असफल साबित हुई। उधर, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अध्यापक संगठन के पदाधिकारियों का कहना है कि आजमगढ़ में सपा सुप्रीमो के खिलाफ लोगों से वोट देने की अपील की जाएगी।
वर्ष 2012 में उलेमा काउंसिल को मिले वोट-
वर्ष 2012 यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान उलेमा काउंसिल ने आजमगढ़ और इसके आसपास की सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र की पांच विधानसभा सीटों पर पार्टी को महज 20 हजार वोट प्राप्त हुए। इसके अलावा पीस पार्टी और माफिया सरगना मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के प्रत्याशियों ने भी कुछ वोट प्राप्त किए थे।।
आजमगढ़ से अलीगढ़ का खास लगाव-
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आजमगढ़ के युवक काफी तादाद में शिक्षा ग्रहण करते हैं। ऐसे में विश्वविद्यालय के अध्यापकों का चुनाव प्रचार मुलायम के लिए समस्या खड़ी कर सकती है।
विधानसभा सीट     -   पार्टी           -  प्राप्त मत
1-सगड़ी          - उलेमा काउंसिल   -  5035 वोट
2-मुबारकपुर     -  पीस पार्टी         -  16334 वोट
2-मुबारकपुर     -  कौमी एकता दल -  4179 वोट
3-गोपालपुर     -   उलेमा काउंसिल  - 10512 वोट
3-गोपालपुर    -  कौमी एकता दल   - 2848 वोट
4- आजमगढ़ सदर-उलेमा काउंसिल  - 2575 वोट
5-मेहनगर (आरक्षित)- कौमी एकता गठबंधन-5723 वोट

Saturday 29 March 2014

मिर्जापुर-क्या बेटी ला पाएगी पिता का सम्मान!


बलिराम सिंह
कभी अपना दल से चुनावी जंग जीतने वाले सुरेन्द्र सिंह पटेल आज समाजवादी पार्टी के रथ पर सवार हैं। सुरेन्द्र सिंह पटेल वर्तमान में यूपी सरकार में लोक निर्माण राज्य मंत्री हैं और लोकसभा चुनाव में मिर्जापुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। इनके खिलाफ अपना दल की राष्ट्रीय महासचिव और वाराणसी से विधायक अनुप्रिया पटेल भाजपा गठबंधन की ओर से ताल ठोकेंगी।
वाराणसी, आजमगढ़ के अलावा मिर्जापुर सीट भी हॉट हो गई है। यहां से कांग्रेस की ओर से ललितेशपति त्रिपाठी चुनाव लड़ रहे हैं। ललितेपशपति त्रिपाठी पर स्वर्गीय कमलापति त्रिपाठी के विरासत को आगे बढ़ाने का दबाव है।
अनुप्रिया बनाम सुरेन्द्र सिंह पटेल-
कुर्मी बहुल इस सीट पर राजनीतिक पंडितों की नजर अनुप्रिया बनाम सुरेन्द्र सिंह पटेल पर टिकी है। बता दें कि सुरेन्द्र सिंह पटेल सबसे पहले अपना दल से विधायक बनें थे। लेकिन मायावती की सरकार गठन के बाद इन्होंने पाला बदल लिया था। लेकिन सत्ता के साथ-साथ सुरेन्द्र सिंह खुद को बदलते रहे और बाद में सपा का दामन थाम लिया और अपनी जीत को लगातार जारी रखे हुए हैं। दूसरी ओर पिता के गुजरने के बाद पार्टी को नयी दिशा दे रही उनकी पुत्री अनुप्रिया पटेल की पार्टी को यूपी में दो सीटें मिर्जापुर और प्रतापगढ़ मिली हैं। मजे की बात यह है कि अनुप्रिया ने खुद मिर्जापुर से चुनाव लडऩे का फैसला किया है।
अब देखना यह है कि सुरेन्द्र सिंह अपनी जीत को जारी रखते हैं या पिता का साथ छोडक़र जाने वाले सुरेन्द्र सिंह पटेल को अनुप्रिया पटेल चुनावी शिकस्त दे पाती हैं। ये आने वाला वक्त बताएगा। वैसे एक अंदर की बात यह भी है कि भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यख ओमप्रकाश सिंह और उनके समर्थक भी मिर्जापुर को अपना दल के खाते में दिए जाने से नाराज हैं।

Wednesday 26 March 2014

चिदंबरम के ऊपर फेंके गए जूते पर मलाल नहीं: जरनैल सिंह


Tuesday 25 March 2014

वाराणसी-अपना दल से गठबंधन के बाद, मोदी की जीत पक्की

  -माया हो या मुलायम या हों केजरीवाल,मोदी की जीत पक्की
बलिराम सिंह
अब तो वाराणसी से आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल या सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह अथवा बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती जैसी कोई भी दिग्गज चुनाव लड़े, जीत तो नरेन्द्र मोदी की ही होगी। मोदी की यह जीत ऐतिहासिक हो सकती है। वाराणसी में भाजपा को मुख्य टक्कर देने वाली क्षेत्रीय पार्टी अपना दल का भाजपा से गठबंधन हो गया है। अपना दल पूर्वांचल की दो सीटों मिर्जापुर और प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ेगी और अन्य सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों का समर्थन करेगी।
चूंकि अपना दल को कुर्मी जाति की पार्टी कहा जाता है, लेकिन पिछले 15 सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो इस पार्टी को केवल वाराणसी से लेकर इलाहाबाद-सुल्तानपुर जैसे सामंतवादी क्षेत्रों में ही कुर्मी जाति के वोट मिले। अवध क्षेत्र के कुर्मी बिरादरी का अपना दल को वोट नहीं मिला। हालांकि इस जाति के लोगों की आबादी बरेली से लेकर बिहार तक फैली हुई है। और मुख्यत: सभी राष्ट्रीय अथवा क्षेत्रीय पार्टियों में इस समाज के नेताओं (विनय कटियार, नीतिश कुमार, बेनी प्रसाद वर्मा, लालजी वर्मा, अनुप्रिया पटेल, ओमप्रकाश सिंह, आरपीएन सिंह इत्यादि) की भरमार है।
वाराणसी व इलाहाबाद मंडल में कई प्रत्याशियों को नुकसान-
अपना दल को पिछले 15 सालों के दौरान चुनाव में कोई सफलता नहीं मिली, लेकिन इसकी वजह से कई नेताओं को नुकसान उठाना पड़ा। वाराणसी और इलाहाबाद क्षेत्र में तो पार्टी को काफी तादाद में वोट भी मिले हैं।
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में वाराणसी की सातों सीटों पर भाजपा और अपना दल को मिले वोटों पर नजर डालें तो भाजपा को अपना दल से केवल 65 हजार ज्यादा वोट मिले थे। यहां पर भाजपा को तीन सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इसके अलावा एक सीट पर तीसरे स्थान पर, एक पर चौथे स्थान, एक पर पांचवें स्थान और एक पर छठें स्थान पर रही। पिंडरा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी को महज 3326 वोट मिले थे।
भाजपा के अलावा एक सीट पर बसपा, एक पर कांग्रेस, एक पर सपा और एक पर अपना दल को जीत हासिल हुई थी। सपा से जीतने वाला प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह पटेल भी कुर्मी समाज से हैं और वर्तमान में लोक निर्माण राज्य मंत्री हैं।
वाराणसी में अपना दल की स्थिति-       
रोहनिया सीट से पार्टी की राष्ट्रीय महामंत्री अनुप्रिया पटेल को जीत हासिल हुई। इसके अलावा सेवापुरी में दूसरे स्थान पर, पिंडरा में तीसरे स्थान पर और अजगरा सुरक्षित सीट पर चौथे स्थान पर रही। सेवापुरी से कुल प्रत्याशियों में लगभग आधे प्रत्याशी कुर्मी समाज से थे।
भाजपा से ज्यादा वोट पाकर भी सपा-बसपा फीसड्डी-
खास बात यह है कि वाराणसी की सातों सीटों पर सपा और बसपा को भाजपा से लगभग 30 हजार वोट ज्यादा मिले। बावजूद इसके इन दोनों महत्वपूर्ण पार्टियों को महज एक-एक सीट से ही संतोष करना पड़ा।
जातीय आंकड़े-
शहरी क्षेत्र में ब्राह्मण, बनिया के अलावा अन्य समाज की संख्या बहुतायत है तो ग्रामीण क्षेत्र में कुर्मी जाति का बोलबाला है। इसके अलावा आरक्षित आबादी भी काफी तादाद में हैं।
भाजपा को मिले कुल वोट- 218262
अपना दल को मिले कुल वोट-153585
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दोनों दलों की विधानसभा वार मिले वोटों की स्थिति-
विधानसभा           -     भाजपा               -   अपना दल
कैंट                 -  57918                   -    1800
नार्थ                -   47980                  - 
दक्षिणी            -    57868                  -
अजगरा          -     22855                 -      16563
पिंडरा            -       3326                 -       40468
सेवापुरी         -        9811                -      36942
रोहनिया        -     18504                 -       57812
कुल           -   218262                   -    153585

Monday 24 March 2014

आजमगढ़- अमर सिंह के लिए उपजाऊ नहीं है उनका पैतृक क्षेत्र


बलिराम सिंह
खुद को मीडिया के सामने ठाकुरों का हितैषी बताने वाले और सदैव चकाचौंध में रहने वाले ठाकुर अमर सिंह के लिए खुद उनका पैतृक क्षेत्र आजमगढ़ उनके लिए बंजर है। लक्ष्मी के धनी अमर सिंह से पूर्वांचल की प्रजा दूर है।
पिछले दिनों राष्ट्रीय लोक दल में शामिल होने के बाद अमर सिंह ने कहा था कि जाट और ठाकुर स्वाभिमान की लड़ाई लड़ते हैं और मैंने पूर्वांचल के विकास के लिए वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव से पहले 1000 किलोमीटर की पदयात्रा की थी।
लेकिन वर्ष 2012 विधान सभा चुनाव पर नजर डालें तो अमर सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकमंच वोट प्राप्ति में हजार का आंकड़ा पार करने को तरस गई। चूंकि आजमगढ़ जिला अमर सिंह का पैतृक क्षेत्र है और आजमगढ़ सदर की पांच सीटों पर नजर डालें तो इनके पांच उम्मीदवारों को मुश्किल से कुल 6000 वोट मिले थे। हालांकि  यहां पर राजपूतों की संख्या एक लाख के करीब है।
अमर सिंह के मुख्य कोट्स-
वर्ष 2007 से पहले मुलायम सरकार के दौरान-
यूपी पुलिस में सर्वाधिक यादवों की भर्ती मामले में अमर सिंह ने कहा था कि शारीरिक तौर पर यादव वर्ग मजबूत होते हैं।
अब अजीत सिंह के साथ जाने पर-
जाट और राजपूत स्वाभिमान की लड़ाई लड़ते हैं।
राजपूतों नेताओं के प्रति अमर सिंह के बोल-
-समाजवादी नेता मोहन सिंह के बारे में अमर सिंह ने कहा था कि उनके इलाज में हमने पैसा लगाया।
-पुलिस अधिकारी शैलेन्द्र सिंह को अमर सिंह की वजह से नौकरी छोडक़र राजनीति में आना पड़ा। हालांकि अभी तक शैलेन्द्र सिंह को सफलता नहीं मिली।
वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव में आजमगढ़ की पांच विधानसभा क्षेत्रों में राष्ट्रीय लोकमंच को मिले वोट-
सगड़ी               - 641
मुबाकर पुर          - 728
मेहनगर              -  1813
गोपालपुर            -    755
आजमगढ़ सदर     -   2486

Saturday 22 March 2014

आजमगढ़ में शुरू हो गया साम-दाम-दंड का इस्तेमाल--- -पांच दिन में भाजपा के दो पूर्व विधायक सपा में शामिल




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नरेन्द्र मोदी के गुजरात से वाराणसी का रूख करने से स्थानीय विपक्षी पार्टियों के कार्यकत्र्ताओं में निराशा तो व्याप्त हैं, लेकिन इसके विपरीत सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह के आजमगढ़ से चुनाव लडऩे का फैसला करते ही स्थानीय भाजपा में हलचल मच गई है। महज पांच दिनों के अंदर पार्टी के दो पूर्व विधायक भाजपा छोडक़र सपा का दामन थाम चुके हैं। आजमगढ़ में इन दिनों जबरदस्त अफवाह का माहौल गरम हो गया है।
भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री के दावेदार नरेन्द्र मोदी के वाराणसी से लोकसभा चुनाव लडऩे से पूर्वांचल के कार्यकत्र्ताओं में जबरदस्त जोश है और अन्य दलों के कार्यकत्र्ता हताश नजर आ रहे हैं। लेकिन जहां तक आजमगढ़ का सवाल है तो वहां पर इन दिनों माहौल इस कदर गरम हो गया है कि विपक्षी दलों के कार्यकत्र्ता किसी भी अनहोनी से सहमे हुए हैं। फतह हासिल करने के लिए इन दिनों यहां पर साम, दाम, दंड सभी तरह की नीतियां अपनायी जा रही हैं। अनेक विपक्षी नेताओं को अपने पाले में करने के लिए प्रलोभन से लेकर अन्य नीतियों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
स्थिति ऐसी हो गई है कि खुद भाजपा के मौजूदा सांसद एवं उम्मीदवार रामाकांत यादव को प्रेस कांफ्रेस के जरिए सफाई देनी पड़ी कि वह भाजपा में ही रहेंगे। उधर, पार्टी के पूर्व विधायक राम दर्शन यादव और पूर्व विधायक कल्पनाथ पासवान महज पांच दिन के अंदर सपा में शामिल हो गए हैं। खास बात यह है कि भाजपा की सूची जारी होने से पूर्व राम दर्शन यादव घोसी संसदीय क्षेत्र से टिकट की दावेदारी के लिए एड़ी-चोटी एक किए हुए थे। स्थानीय नेताओं की अपील है कि आला कमान को आजमगढ़ की स्थिति पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। पार्टी को यदि आजमगढ़ और आसपास की सीटों पर जीत हासिल करनी है तो गैर यादव अन्य पिछड़ी जातियों को पार्टी के पाले में करना जरूरी है।
क्या कहते हैं भाजपा नेता-
सगड़ी से विधानसभा चुनाव लड़ चुके भाजपा नेता घनश्याम पटेल कहते हैं कि इन दिनों आजमगढ़ में अफवाहों का बाजार गरम है। यहां पर भाजपा के सम्मान की बात हैं और हमलोग पूरी निष्ठा से मुलायम सिंह को टक्कर देंगे।
जातीय आंकड़े-
सवर्ण- 3.5 लाख
यादव- 3   लाख
मुस्लिम-2.5 लाख
हरिजन-3.5 लाख के करीब
अन्य एससी जाति-1.25 लाख (सोनकर-पासवान)
अन्य पिछड़ी जाति-4.5 लाख (सवा लाख कुर्मि, 65 हजार कोइरी, चौहार, राजभर व अन्य )

Thursday 20 March 2014

मोदी पर कमेंट से बौखलाएं भाजपायी


गुजरात में कौन सा किया पाप,
जिसे धोने बनारस पहुंचे आप।
पिछले दो दिनों से यह कमेंट आम आदमी पार्टी के फेसबुक पर छाया हुआ है। कमेंट के साथ भाजपा के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को गंगा नदी में उतरते हुए दिखाया गया है। आम आदमी पार्टी के फेसबुक पेज पर इन दिनों बड़े पैमाने पर वाकयुद्ध चल रहा है। अधिकांशत नरेन्द्र मोदी और अरविंद केजरीवाल के समर्थकों के बीच यह घमासान चल रहा है।
आप के समर्थकों ने कमेंट क्या लगा दिया, बस पूछिए मत। मोदी समर्थकों ने आक्रामक तौर पर हमला शुरू कर दिया है। मोदी समर्थक राजेश शर्मा कहते हैं कि भाई काशी में सभी जाते हैं। चाहे वह पापी हो या संत। लेकिन ये बात अनपढ़ को मालूम नहीं। दूसरी ओर चंदन कुमार कहते हैं कि ये तो वही बात हुई जैसे मनमोहन सिंह को गुवाहाटी भेजा गया। चंदन कुमार यह भी दलील देते हैं कि गुजरात में विकास का डंका पिटने वाले को वाराणसी आने की क्या जरूरत है। फिर मोदी समर्थक लक्ष्मण पार्वती पटले कहते हैं कि केजरीवाल को गाजियाबाद वापस भेजने के लिए मोदी वाराणसी गए हैं। पायल नाम की युवती केजरीवाल पर नाराजगी जताते हुए कहती हैं कि केजरीवाल कर रहा जो पाप, देश नहीं करेगा माफ।
ये सिलसिला यहीं नहीं रूकता है। मोदी समर्थक उपेन्द्र सिंह तुरंत हमला करते हुए कहते हैं कि चलो मोदी पाप धोने वाराणसी आए हैं, लेकिन ये भी तो बताओ कि केजरीवाल क्या करने आए हैं।


युवा तुर्क की राजनीतिक विरासत संभालने को परिवार में रस्साकसी


युवा तुर्क चन्द्रशेखर की राजनीतिक विरासत संभालने को लेकर इन दिनों परिवार में खूब रस्साकसी चल रही है। युवा तुर्क के कनिष्ठ पुत्र नीरज शेखर फिलहाल बलिया संसदीय क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद हैं और तीसरी जीत के लिए इन दिनों खूब जतन कर रहे हैं।
तो ज्येष्ठ पुत्र पंकज शेखर महज ने कुछ महीने पहले भाजपा का दामन थामा है और राजनीतिक मिजाज जानने के लिए सलेमपुर संसदीय क्षेत्र (बलिया-देवरिया) का बड़े पैमाने पर दौरा किया और सलेमपुर से टिकट के लिए खूब दौड़-धूप की। लेकिन पार्टी ज्वाइन करते ही स्थानीय कार्यकत्र्ताओं ने पंकज शेखर का विरोध शुरू कर दिया। खास बात यह है कि युवा तुर्क का पैतृक निवास इब्राहिम पट्टी भी सलेमपुर क्षेत्र में आता है। यहां से चन्द्रशेखर के भतीजे (रविशंकर सिंह) भी बसपा टिकट पर सलेमपुर से चुनाव मैदान में हैं। रविशंकर सिंह की पूर्वांचल में दबंग किस्म की छवि है।
यानी की परिवार के तीन सदस्य तीन दलों के जरिए खुद को युवा तुर्क का सबसे बड़ा झंडाबरदार साबित करने में लगा है। अब देखना यह है कि इन तीनों चेहरों में से कौन लंबी राजनीतिक पारी खेलता है।
सलेमपुर की स्थिति-
राजभर और कुशवाहा के अलावा आरक्षित वर्ग के मतदाताओं की संख्या यहां पर ज्यादा है। पिछले तीस वर्षों में यहां से कुशवाहा प्रत्याशी को जीत का स्वाद ज्यादा चखने को मिला। यहां से  कांग्रेस ने अपने पुराने चेहरे भोला पाण्डेय को और भाजपा ने पूर्व सांसद हरिकेवल कुशवाहा के बेटे रविन्द्र कुशवाहा को चुनाव मैदान में उतारा है।
कुछ उत्साही युवक कर रहे हैं कुशवाहा का विरोध-
लोकसभा चुनाव में टिकट को लेकर भाजपा के नाराज कार्यकत्र्ता सलेमपुर में भी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। ये कार्यकत्र्ता पंकज शेखर को टिकट देने की मांग कर रहे हैं। लेकिन राजनीतिक पंडितों की माने तो यदि पंकज शेखर को भाजपा टिकट देती है तो पप्पू सिंह जीत जाएंगे। और इसी मुद्दे को लेकर भाजपा के स्थानीय नेता प्रमोद सिंह राजपूत ने पंकज शेखर का विरोध किया था। प्रमोद सिंह ने खुलेआम कहा था कि यदि पंकज शेखर को टिकट दिया जाता है तो भाजपा सलेमपुर में चुनाव हार सकती है।

Tuesday 11 March 2014

मानो न मानो, भाजपा का ज्यादा आक्रामकता नीतिश के लिए फायदेमंद


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Monday 10 March 2014

लोकप्रियता के बावजूद सुरक्षित सीट की तलाश में भाजपा नेता


भाजपा नेताओं की भी अजब पहेली है, एक ओर दावा किया जा रहा है कि भाजपा का ग्राफ उफान पर है तो दूसरी ओर तमाम बड़े नेता सुरक्षित सीट की तलाश में हैं। और अन्य सीटों पर अपने नुमाइंदों को टिकट दिलाने की पैरवी हो रही है। भले ही वह उम्मीदवार पैराशूट से आया हो।
पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह गाजियाबाद के बजाय लखनऊ जैसी सुरक्षित सीट की तलाश में हैं तो पिछले चुनाव में इलाहाबाद से वाराणसी पलायन करने वाले मुरली मनोहर जोशी सीट छोडऩा नहीं चाहते हैं। कलराज मिश्रा गाजीपुर के बजाय कानपुर से दावेदारी ठोक रहे हैं। आखिर क्यों भाई? जब आप जनाधार वाले नेता हैं तो फिर सुरक्षित सीट की तलाश क्यों कर रहे हैं? आचार संहिता लागू हो गई, लेकिन पार्टी ने अब तक प्रत्याशियों की सूची जारी नहीं की। नामांकन तिथि समाप्त होने के ऐन मौके पर पार्टी नेता आनन-फानन में अपने-अपने नुमाइंदों को टिकट दिला देंगे। फिर तो सब जानते हैं कि पार्टी का क्या पलीता होगा। कुछ लोगों की जिद का खामियाजा पार्टी और उससे जुड़े सच्चे कार्यकत्र्ताओं को भुगतना पड़ता है।

Saturday 8 March 2014

खगडिय़ा में लालू-नीतीश •े सहारे चुनावी मैदान में दो पत्नियां

बिहार •े खगडिय़ा संसदीय सीट पर इस बार चुनावी मु•ाबला दिलचस्प है। बाहुबली रणबीर यादव •ी दो पत्नियां लालू और नीतीश •ुमार •ी पार्टियों से लो•सभा चुनाव में ताल ठो•ेंगी। यादव •ी पहली पत्नी पूनम यादव जनता दल यूनाइटेड •ी विधाय• है और खगडिय़ा से चुनावी मैदान में उतरने •ी तैयारी में हैं तो रणबीर यादव •ी दूसरी पत्नी •ृष्णा यादव लालू यादव •ी लालटेन •े सहारे संसद भवन पहुंचने •ी •ोशिश •र रही हैं।
मजे •ी बात यह है •ि बाहुबली •ी दोनों पत्नियां सगी बहनें हैं और ए• ही छत •े नीचे रहती हैं, ले•िन चुनावी मैदान में दोनों धूर-विरोधी लालू-नीतीश •े सहारे संसद में पहुंचने •ी •ोशिश •रेंगी।

Thursday 6 March 2014

आशुतोष जी, यहां सूत्रों के हवाले से खबर नहीं चलती


पत्रकार से नेता बने आशुतोष और शाजिया इल्मी इन दिनों भाजपा के खिलाफ खूब आग उगल रहे हैं। लेकिन इन्हें मालूम होना चाहिए कि ये पत्रकारिता नहीं बल्कि राजनीति है। यहां पर सूत्रों के हवाले से खबर नहीं चलती है, बल्कि ठोस रणनीति और आपके कामकाज के आधार पर तवज्जो मिलती है।
बुधवार को दोनों नेताओं ने भाजपा मुख्यालय पर इकट्ठा होकर खूब जनता को उकसाया और पत्थरबाजी करवायी-
अब इनसे मैं दो सवाल पूछता हूं-
1- जब गुजरात में आचार संहिता लागू हो गई और पुलिस सीधे चुनाव आयोग के अंतर्गत आ गई तो ऐसे में नरेन्द्र मोदी कैसे अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार करवा सकते हैं?
2-जब आप किसी के घर में जाकर विरोध-प्रदर्शन करेंगे तो घर का आदमी अपने बचाव में कुछ तो करेगा। ऐसे में भाजपा ने गुंडई कैसे की?

Wednesday 5 March 2014

10 अप्रैल तक ही केजरीवाल के पीछे दौड़ेगी मीडिया


तो लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के पीछे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मात्र 35 दिन ही दौड़ेगी। निर्वाचन आयोग ने 9 चरणों में लोकसभा चुनाव की तिथियां घोषित कर दी है। दिल्ली और हरियाणा में तीसरे चरण में 10 अप्रैल को चुनाव संपन्न हो जाएगा।
ऐसे में दिल्ली और एनसीआर में चुनाव का टेंपो 10 अप्रैल तक ही रहेगा।  अर्थात केजरीवाल के प्रत्येक बयान को 10 अप्रैल तक ही ज्यादा तवज्जो मिलेगी।
दिल्ली-हरियाणा में चुनाव संपन्न होते ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व अखबार दिल्ली की रोजमर्रा की समस्याएं बिजली-पानी की ओर अपने कैमरा का रूख मोड़ देंगी। ऐसी स्थिति में अन्य राज्यों में होने वाले सिलसिलेवार लोकसभा चुनाव में लोकल मुद्दे व समस्याएं और प्रत्याशियों को भी कुछ प्रचार का मौका मिल जाएगा। अन्यथा देशवासियों को भारतीय मीडिया में केवल केजरीवाल-मोदी-राहुल को ही देखना पड़ता।
लोकसभा चुनाव की तिथियां-                                                                                                                                 7 अप्रैल, 9 अप्रैल, 10 अप्रैल, 12 अप्रैल, 17 अप्रैल, 24 अप्रैल, 30 अप्रैल, 7 मई और 1 मई
दिल्ली में लोकसभा चुनाव- 10 अप्रैल
मतगणना                 - 16 मई

Tuesday 4 March 2014

मोदी की राह सुगम करने के लिए अपना दल पर डोरा डाल रही भाजपा

वाराणसी से चुनावी समर फतह करने के लिए नरेन्द्र मोदी को अपना दल की दरकार है। खास बात यह है कि वर्तमान में यह दरकार दोनों पक्षों को है। ऐसे में दोनों पक्षों के बीच गठबंधन की खिचड़ी भी पक रही है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार गठबंधन की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। लेकिन इस मामले में एक पेंच भी आ रहा है। भाजपा नेता जहां अपना दल का भाजपा में विलय चाहते हैं, वहीं अपना दल विलय के बजाय गठबंधन चाहता है।
क्यों है अपना दल से गठबंधन जरूरी:
विधानसभा 2012 के उतर प्रदेश चुनाव में अपना दल महासचिव अनुप्रिया पटेल ने वाराणसी के रोहनिया विधानसभा सीट पर जीत हासिल की। इसके अलावा एक सीट पर अपना दल दूसरे स्थान पर एवं एक सीट पर तीसरे स्थान पर रही। अर्थात अपना दल को वाराणसी जिले में अच्छा खासा वोट प्राप्त हुआ। अपना दल के अलावा समाजवादी पार्टी के लोक निर्माण विभाग के राज्य मंत्री सुरेन्द्र सिंह पटेल भी इसी जिले से जीत कर आए हैं और कुर्मि बिरादरी से संबंध रखते हैं। ऐसे में सुरेन्द्र सिंह पटेल की लोकप्रियता भी भाजपा प्रत्याशी की जीत में रोड़ा बनेगी। लोकसभा चुनाव में प्रत्येक सीट को महत्वपूर्ण मानकर चल रही भाजपा के लिए वाराणसी भी अहम है। साथ ही प्रधानमंत्री के दावेदार नरेन्द्र मोदी की जीत सुनिश्चित करने के लिए अपना दल से गठबंधन जरूरी है।

Monday 3 March 2014

लालू-मुलायम-मायावती को उदित राज की नसीहत


सेक्युलरिज्म के नाम पर मुसलमानों को वोट बैंक समझने वाली कांग्रेस एवं लालू-मुलायम, मायावती सरीखे ऐसे नेताओं को एक बार फिर से अपनी रणनीति पर मंथन करने की जरूरत है। भाजपा में शामिल दलित नेता उदित राज ने अपने लेख में स्पष्ट किया है कि गुजरात में जो हुआ, बुरा हुआ, लेकिन गोधरा में जो हुआ, वह भी अच्छा नहीं हुआ। करोड़ों की तादाद में बंग्लादेशी भारत आ रहे हैं, उस पर कोई नहीं बोलता है, भारत-पाक विभाजन के समय वहां पर 22 फीसदी हिन्दू थें, अब वहां पर मात्र दो फीसदी हैं, आखिर वो कहां चले गए। तथाकथित सेक्युलरिस्टों को गुजरात तो याद रहता है, लेकिन कश्मीर भूल जाते हैं।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि यदि दलितों-आदिवासियों को भाजपा मीडिया, उद्योग, व्यापार, ठेका, आपूर्ति में भागीदारी दे तो दलितों की स्थिति में जल्द ही सुधार हो जाएगा।

Sunday 2 March 2014

टीवी चैनलों पर भाजपा-कांग्रेस के बोगस नेता


ये टीवी चैनलों को भाजपा से केवल सुधांशु मित्तल और कांग्रेस से अखिलेश प्रताप सिंह ही नजर क्यों आते हैं,,,,क्या इन दोनों पार्टियों में अच्छे वक्ता नहीं हैं जो अपनी बात को मजबूती से रखें?