Saturday 30 May 2015

मुस्लिम बंधुओं को शिकायत से ज्यादा आत्म मंथन की जरूरत

विकास चाहते हैं तो रहें सदैव संघर्षशील 
-मुख्यधारा से दूर हो रहे समाज को मंथन की जरूरत 
बलिराम सिंह
हमारा क्षेत्र (बेल्थरा रोड, बलिया, मऊ और देवरिया से सटा) ओबीसी और एससी बहुल है। सवर्ण के तौर पर क्षेत्र में ठाकुरों के कुछ गांव हैं। लेकिन 35 साल पहले मुसलमानों के आगे सभी बौने थें। होश संभाला तो क्षेत्र में मुसलमानों का ही दबदबा था। राजनीति से लेकर सरकारी कार्यालयों, अदालत तक इन्हीं की पहुंच थी। उसी दौरान मेरे पड़ोसी गांव अवांया के निवासी एक मुस्लिम युवक रिजवान अहमद 37 साल पहले आईपीएस बने।  एक अन्य गांव पर्सिया के एक मुस्लिम युवक भी रेलवे के बड़े अधिकारी बनें। इनके अलावा एक खान साहब दिल्ली के कानून के पत्रकार और एक खान साहब वैज्ञानिक भी बनें। इनके अलावा कई अन्य खान साहबों ने सरकारी नौकरियों में बाजी मारी।
           लेकिन समय के साथ यह समाज अरब कंट्री मूव किया और अच्छा पैसा कमाया, इनके घरों में नई-नई गाडिय़ां आ गईं, लेकिन इस चकाचौंध का यह नतीजा रहा कि ये तो ये सरकारी सेवाओं और राजनीति से दूर हो गए। 90 के दशक में समाज में आए बदलाव के साथ समाज की मुख्य धारा में आने को उमड़ रहा नीचला तबका भी अंगड़ाइयां लेने लगा। फलस्वरूप नतीजा यह हुआ कि क्षेत्र के ठाकुरों के अलावा यादव, हरिजन, कुर्मी, कोइरी समाज ने भी शिक्षा के जरिए काफी विकास किया। यदि ठेकेदारी, प्रशासन और शैक्षणिक क्षेत्र में ठाकुरों का वर्चस्व है तो प्रशासन और राजनीति में यादव और हरिजनों का बोलबाला हो गया है। इसी तरह खेती से जुड़े कारोबार, सरकारी नौकरी और राजनीति के क्षेत्र में कोइरियों ने भी मजबूती हासिल की है। क्षेत्र में कम संख्या के बावजूद पटेल (कुर्मी) युवक मेडिकल, इंजीनियरिंग और शिक्षा क्षेत्र में काफी विकास कर रहे है। हालांकि अभी भी इस क्षेत्र का राजभर समाज (ओबीसी) राजनैतिक तौर पर तो मजबूत हुआ है, लेकिन ओबीसी के अंतर्गत आने के बावजूद ये शैक्षणिक तौर पर हरिजनों से बहुत पीछे हो गये हैं।
दूसरी ओर मुस्लिम समाज खुद को अरब देशों तक ही सीमित हो गया, कुछ लोग अपने जमीन-जायदाद बेचकर कानपुर, मऊ और आजमगढ़ में जा कर बस गए, रिजवान अहमद भी पिछले साल यूपी के पुलिस महानिदेशक पद से सेवानिवृत हो गए। इनके भाई भी 20 साल पहले राजनीति में किस्मत आजमाएं, लेकिन असफल रहें। अत: दोस्तों जो समाज सदैव संघर्ष करेगा और आगे बढऩे की कोशिश करेगा, वही समाज की मुख्य धारा से जुड़ा रहेगा। अन्यथा अपने पिछड़ेपन के लिए नेताओं को ही दोषी ठहराता रहेगा। मुस्लिम समाज को इस बारे में मंथन की जरूरत है।
मुस्लिम बंधुओं ने पूर्व प्रधानमंत्री का भी किया था सहयोग-
एक खास बात और, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी ने भी राजनीति की शुरूआत इसी क्षेत्र से की थी और गांव शाहपुर के मुस्लिम बंधुओं के अलावा तिरनई खिज्रपुर के पठान अब्दुलहद नुमानी ने चंद्रशेखर जी का बहुत सहयोग किया था। संस्कृत, हिन्दी और उर्दू भाषा पर अच्छी पकड़ रखने वाले अब्दुलहद नुमानी तो चंद्रशेखर जी के साथ एक ही साइकिल पर घूम-घूम कर कार्यक्रमों में भाग लिया करते थे। हालांकि अपने अंतिम दिनों में स्वाभिमानी स्वभाव के नुमानी जी चंद्रशेखर जी से दूर हो गए और गांव में ही लगभग 12 साल पहले इनका इंतकाल हो गया।

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