Sunday 13 July 2014

एम्स- कैंसर मरीजों को मिलने वाली मदद में गिरावट


-तीन सालों में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से मात्र 176 मरीजों को मिला आर्थिक सहयोग
बलिराम सिंह, नई दिल्ली

जहां देश में कैंसर पीडि़त मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, वहीं अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में इलाज के लिए आने वाले मरीजों को मिलने वाली सहायता राशि में लगातार गिरावट आ रही है। पिछले तीन वर्षों के दौरान एम्स के डॉ.भीमराव अंबेडकर इंस्टीट्यूट रोटरी कैंसर अस्पताल (डॉ.बीआरएआईआरसीएच) में मात्र 176 कैंसर रोगियों के इलाज में होने वाले खर्च के लिए आर्थिक मदद की गई।
दैनिक भास्कर संवाददाता ने सूचना के अधिकार के तहत एम्स प्रशासन से पूछा था कि पिछले तीन वर्षों के दौरान केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से इलाज के लिए कितने गरीब मरीजों को आर्थिक मदद दिलायी गई? इस मामले में कैंसर अस्पताल ने जवाब दिया कि तीन वर्षों के दौरान 176 मरीजों को आर्थिक मदद दिलायी गई। इनमें से अप्रैल 2011 से मार्च 2012 के दौरान 70 मरीजों को 8770941 रुपए की मदद की गई। इसके अलावा अप्रैल 2011 से मार्च 2012 के दौरान 50 मरीजों को 115 लाख रुपए और अप्रैल 2012 से मार्च 2013 के दौरान मात्र 56 मरीजों को आर्थिक मदद दिलायी गई। इन मरीजों को नेशनल इलनेस असिस्टेंट फंड (एनआईएएफ) और हेल्थ मिनिस्टरी कैंसर रोगी फंड के जरिए ये मदद दिलायी गई है।
बता दें कि कैंसर रोगियों के इलाज में बड़े पैमाने पर आर्थिक मदद की जरूरत होती है। गरीब मरीजों के अलावा सामान्य मरीज के लिए भी इलाज का खर्च वहन करना काफी मुश्किल भरा होता है। वर्ष 2012-13 के दौरान संस्थान के ओपीडी में देश भर से 91100 मरीज इलाज के लिए आये। हालांकि एम्स के निदेशक डॉ.एमसी मिश्रा अपने ही अधिकारियों के जवाब से संतुष्ट नहीं हैं और कहते हैं कि यह जानकारी अधूरी है।
केस हिस्ट्री-
बिहार के दरभंगा के रहने वाले राजेश यादव पिछले दो महीने से एम्स के कैंसर संस्थान में ब्लड कैंसर से पीडि़त अपने भाई का इलाज करा रहे हैं। राजेश का कहना है कि उसके घर की माली हालत खराब है। दवाइयों की खरीद पर पिछले दो महीने के अंदर 50 हजार रुपए तक खर्च हो चुका है। काफी महंगी दवाइयां खरीदनी पड़ रही है। एम्स प्रशासन द्वारा खोले गए केमिस्ट शॉप पर महंगी दवाइयां नहीं हैं। ऐसे में उसे बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ रही है।
निजी क्षेत्र ने भी किया सहयोग-वर्ष 2012-13 के वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक दो निजी संस्थाओं ने कैंसर पीडि़त मरीजों को 3684661 रुपए की एंटी कैंसर ड्रग्स मुफ्त में मरीजों को वितरित किया।

Thursday 3 July 2014

एम्स ट्रॉमा सेंटर का हाल -तीन सालों में महज दो गरीब मरीजों को मिली आर्थिक मदद


-तीन सालों में इलाज के लिए आए ढाई लाख से ज्याद मरीज
-ट्रॉमा सेंटर में इलाज के लिए आते हैं दुर्घटनाग्रस्त मरीज
बलिराम सिंह, नई दिल्ली

वैसे तो गरीब मरीजों के इलाज के लिए एम्स को बड़े पैमाने पर ग्रांट मिलता है और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी आर्थिक सहयोग करता है, लेकिन एम्स के जयप्रकाश नारायण अपेक्स ट्रॉमा सेंटर में पिछले तीन सालों के दौरान मात्र दो मरीजों को ही आर्थिक सहयोग दिया गया।
दैनिक भास्कर संवाददाता द्वारा दायर किए गए सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत यह खुलासा हुआ है। एम्स प्रशासन से पूछे गए सवालों के जवाब एम्स ट्रॉमा सेंटर द्वारा जानकारी दी गई कि पिछले तीन सालों के दौरान मात्र दो मरीजों को आर्थिक सहयोग दिलायी गई। वर्ष 2010-11 के दौरान एक मरीज, वर्ष 2011-12 में किसी को नहीं और वर्ष 2012-13 में एक मरीज को आर्थिक सहयोग किया गया। खास बात यह है कि सेंटर में सोशल ऑफिसर के तौर पर अनेक अधिकारी और कर्मचारी तैनात हैं। बावजूद इसके गरीब मरीजों को पर्याप्त सहयोग नहीं मिल पा रहा है।
220000 रुपए का किया गया सहयोग-

ट्रॉमा सेंटर में इलाज के लिए विजय बिष्ट नामक मरीज को मुख्यमंत्री कार्यालय से दो लाख रुपए और ईद मोहम्मद नामक मरीज को केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से 20 हजार रुपए की  आर्थिक मदद की गई।
ट्रॉमा सेंटर में आने वाले मरीजों की संख्या-

अमूमन ट्रॉमा सेंटर में रोजाना 240 से 250 मरीज इलाके लिए आते हैं। ये मरीज दुर्घटनाग्रस्त अथवा गंभीर रूप से चोटिल होते हैं, जिन्हें तत्काल इलाज की जरूरत होती है। वर्ष 2012-13 के दौरान ट्रॉमा सेंटर के ओपीडी में 88220 मरीज इलाज के लिए लाए गए और 5773 मरीजों की सर्जरी की गई। यदि एक साल में इतने मरीज इलाज के लिए आए तो तीन साल के दौरान ट्रॉमा सेंटर में लगभग ढाई लाख से ज्यादा मरीज इलाज के लिए लाए गए।
अस्पताल प्रशासन की दलील-
एम्स के चिकित्सा अधीक्षक डॉ.डीके शर्मा कहते हैं कि हमारे पास पर्याप्त मात्रा में ग्रांट आता है। यदि किसी मरीज को आर्थिक सहयोग की जरूरत होती है तो हम उसे मुहैया कराते हैं।
सामाजिक कार्यकत्र्ता की दलील-

सामाजिक कार्यकत्र्ता अशोक अग्रवाल इस आंकड़े को सुनकर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहते हैं कि इस बारे में मरीजों को जागरूक करने की जरूरत है। आर्थिक तौर पर कमजोर मरीजों के इलाज के लिए अस्पताल प्रशासन को खुद मरीज की स्थिति को देखकर सहयोग की पहल करनी चाहिए। साथ ही मरीजों को मिल रही सुविधाओं को आसान करना चाहिए, ताकि मरीजों का समय से इलाज हो सके।
गरीब मरीज के लिए जरूरी कागजात-

मरीज के पास बीपीएल राशन कार्ड हो। यदि बीपीएल कार्ड नहीं है तो संबंधित क्षेत्र के एसडीएम अथवा लोकसभा सदस्य द्वारा सिफारिश की गई हो। खास बात यह है कि यदि मरीज के पास बीपीएल कार्ड अथवा पत्र नहीं है और वह आर्थिक तौर पर काफी कमजोर है तो इलाज करने वाले संबंधित डॉक्टर मरीज के इलाज के लिए सिफारिश कर सकता है।