Wednesday 26 November 2014

कुदरती गलती को डॉक्टरों ने सुधारा----- -पेट-लीवर से जुड़ी दो जुड़वा बच्चियों को डॉक्टरों ने किया अलग


-पेट-लीवर से जुड़ी दो जुड़वा बच्चियों को डॉक्टरों ने किया अलग
-देश में पहली बार हुई अनोखी सर्जरी, 6 घंटे तक किया गया ऑपरेशन
मेदांता अस्पताल के डॉक्टरों ने किया चमत्कार
बलिराम सिंह, नई दिल्ली

डॉक्टरों ने एक बार फिर अनोखे ऑपरेशन करके खुद को भगवान का दूसरा रूप साबित कर दिया है। डॉक्टरों ने कुदरती गलती को सुधारते हुए पेट और लीवर से सटी दो जुड़वा बच्चियों को सफलता पूर्वक अलग कर दिया। श्रीनगर की हमीदा (बदला हुआ नाम) के घर में ढाई  महीने पहले दो बच्चियों की किलकारियां तो सुनाई दी, लेकिन दोनों बच्चियों का शरीर एक दूसरे से सटे होने की वजह से परिवार में मायूसी भी छा गई। लेकिन इस परिवार की मायूसी को मेदांता अस्पताल के डॉक्टरों ने दूर कर दिया है। सिर और छाती से अलग दोनों बच्चियों का पेट और लीवर एक था, जिसे 15 नवंबर को डॉक्टरों ने सफल सर्जरी के जरिए अलग कर दिया। डॉक्टरों ने इस तरह का देश में पहला मामला होने का दावा किया है।
ढाई महीने पहले पैदा हुईं सबूरा और सफूरा नामक दोनों बच्चियां ऑम्फेलोपेगस नामक (पेट से जुड़ा और दोनों का लीवर एक ही) समस्या से पीडि़त थीं। हालांकि सिजेरियन पैदा हुईं दोनों बच्चियों का वजन 6 किलोग्राम था, जो कि उनके अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है। डॉक्टरों ने 15 नवंबर को 6 घंटे तक चली लंबी सर्जरी के जरिए दोनों बच्चियों को अलग किया और लीवर के हिस्से को समान भागों में अलग-अलग किया गया। 
चुनौती पूर्ण था आपरेशन-

बच्चियों का ऑपरेशन काफी रिस्की था। ऑपरेशन के दौरान बच्चियों की जान जा सकती थी। दोनों बच्चियों के लिए अलग-अलग जांच टीम और एनेस्थिसिया टीम बनाई गई। इस मामले में बच्चियों को ऑपरेशन के लिए तैयार करना भी एक चुनौती थी, उनका हमेशा एक साथ होना, यहां तक कि खून के नमूने, एक्सरे और स्कैन जैसी बहुत मामूली प्रक्रियाओं के लिए भी उनके लिए विशेष व्यवस्था बनानी पड़ी। इन बच्चियों का चार अलग-अलग जांच करना चुनौतीपूर्ण था। इसके तहत ट्राइफेसिक सीटी स्कैन, एक न्यूक्लियर आइसोटॉप हेपेटॉबिलरी स्कैन, एक हाई रिजाल्यूशन चेस्ट स्कैन और उनकी आंतों का एक अलग डाई स्टडी की गई। अस्पताल की पेडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी एंड लीवर ट्रांसप्लांट की निदेशक डॉ.नीलम मोहन के मुताबिक इस तरह के 80 फीसदी मामलों में बच्चों की जन्म के समय ही मृत्यु हो जाती है और मात्र 20 फीसदी बच्चे ही जीवित रह पाते हैं।
ऐसे की गई सर्जरी-
मेदांता अस्पताल के लीवर इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष व मुख्य लीवर सर्जन डॉ.एएस सॉइन के नेतृत्व में बच्चियों की सफल सर्जरी की गई। डॉ.साइन ने कहा कि सर्जरी के दौरान रक्तस्राव का जोखिम ज्यादा था। अत: इन बच्चियों को रक्तहीन लीवर सर्जरी के जरिए ऑपरेशन किया गया। इस बाबत थ्री डाइमेंशनल स्कैन का सहारा लिया गया।
सबसे पहले सर्जरी के जरिए दोनों बच्चियों को अलग किया गया। इसके बाद दोनों बच्चियों की अलग-अलग प्लास्टिक सर्जरी की गई और उनके पेट की क्षतिग्रस्त हिस्सों को दोबारा जोड़ा गया। इसके अलावा दोनों बच्चियों का बेली बटन (नाभि) भी विकसित की गईं। सर्जरी से पहले खुद डॉ.साइन काफी गंभीर थे। ऑपरेशन में अस्पताल प्रबंधन ने रियायत बरतते हुए मात्र 2 लाख रुपए का खर्च बताया है।
ऑपरेशन के सफल होने पर मेदांता अस्पताल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डॉ.नरेश त्रेहन ने कहा कि इस तरह की यदि इस तरह की समस्या से अन्य बच्चे भी पीडि़त होंगे तो उन्हें भी हम पूरी मदद करेंगे और इलाज करेंगे।
आंकड़े-   
ऐसे मामले- एक लाख पर एक मामला
शरीर से सटीं लड़कियां-चार में तीन मामले
जन्म के समय जीवित होने की संभावना-8 में एक
दोंनो बच्चियों का आकार सामान-5 सौ में एक

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