Saturday 20 September 2014

प्रेमचंद के होरी जैसा ही है यूपी-बिहार का किसान

पीएम से एक अपील-
किसानों की आर्थिक वृद्धि के लिए हो विशेष इंतजाम
-खेत में चमड़ी जलाने के बावजूद बच्चों को नहीं मिल पाती बेहतर शिक्षा-स्वास्थ्य
-नौकरीपेशा किसान का परिवार ही कुछ हद तक है समृद्ध
बलिराम सिंह, नई दिल्ली

यदि दिल्ली एनसीआर जैसे महानगरों के आसपास के किसानों को छोड़ दें तो आम तौर पर पूरे देश के किसानों की स्थिति दयनीय ही है। देश के सबसे बड़े जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में तो किसानों की माली हालत कुछ ज्यादा ही खराब है। छोटी होती जा रही जोत, बाजार से दूरी, मजदूरों का अकाल और बिचौलियों और सरकारी अकर्मण्यता की वजह से किसानों के लिए खेती अब घाटे का सौदा साबित हो रही है।
उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों की जनसंख्या खेती पर निर्भर है, लेकिन खेती की दयनीय स्थिति होने की वजह से इन किसान परिवारों के अधिकांश युवक दिल्ली, मुंबई, सूरत, अहमदाबाद, लुधियाना जैसे शहरों की ओर लगातार पलायन कर रहे हैं। मजे की बात यह है कि आज भी हमारा शहरी समाज दिल्ली एनसीआर में रहने वाले किसानों की जीवन शैली के चश्मे से पूरे हिन्दुस्तान के किसानों को देखता है, जो कि बिल्कुल विपरीत है। गौरतलब है कि एनसीआर क्षेत्र में आने वाले किसानों को जमीन अधिग्रहण से करोड़ों रुपए का मुआवजा मिला, घर में चार चक्के की लक्जरी गाडिय़ां शोभा बढ़ा रही हैं। लेकिन इसके विपरीत दिल्ली से दूर अन्य क्षेत्रों  में न तो किसानों के लिए मजदूर मिलते हैं और न ही बाजार में उन्हें फसल का उचित मूल्य ही मिलता है। रही-सही कसर बिचौलिया निकाल देते हैं। यदि कुछ किसान परंपरागत गेहूं-चावल से अलग सब्जियों अथवा अन्य खाद्य पदार्थों की खेती करते हैं तो उन्हें आसपास बेहतर बाजार नहीं मिल पाता है, जिसकी वजह से उन्हें औने-पौने दामों में ही बेचना पड़ता है।
छोटी जोत-

अमूमन मध्य एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में आम ग्रामीणों की जोत बहुत छोटी हो गई है। अधिकांश किसानों के पास 3 से 4 बिगहा खेती लायक जमीन ही रह गई है। यदि किसान के घर में कोई सरकारी नौकरी अथवा शहरों में काम करने वाला नहीं है तो वह किसान आज अपने बच्चे को न तो शिक्षा दिला पाता है और न ही बेहतर ढंग से इलाज ही करा पाता है।
लागत ज्यादा, आमदनी कम-

एक बिगहा खेत में बोए गएख्गेहूं की लागत पर नजर डालें तो ज्ञात होता है कि चार महीने की कड़ी मेहनत के बाद किसान को मात्र 12 हजार रुपए की बचत होती है। अर्थात पति-पत्नी और बच्चों की कड़ी मेहनत के बावजूद उसे चार महीने में केवल इतनी धनराशि से ही घर का खर्च चलाना पड़ता है।  लेकिन इसी उपज में से उसे अपने साल भर के लिए खाने के लिए �भी रखना पड़ता है। ऐसे में इस धनराशि में और अधिक गिरावट आ जाती है।
लागत- (एक बिगहा में बोए गए गेहूं की फसल)-
जोत से पहले सिंचाई -  पांच घंटा     - 700 रुपए
जुताई                -                   900 रुपए
बीज                 - 35 किग्रा      - 800 रुपए
डाई                  - 30 किग्रा     -  720 रुपए
पोटाश              -  10 किग्रा    -   180 रुपए
सिंचाई             -     2 बार    -   1200 रुपए
यूरिया       दो बार  - 80 किग्रा   -     800 रुपए
दवा का छिड़काव                   -    200 रुपए
कटाई        व छंटाई              -   1200 रुपए
कुल लागत                        -     6700 रुपए
नोट- इसमें किसान और उसके परिवार की मजदूरी शामिल नहीं है। इसके अलावा मजदूरों को दी गई धनराशि भी शामिल नहीं है। गेहूं की उपज       - बेहतर हो तो - 12 क्विंटल
गेहूं की कीमत     -   16 रुपए प्रति किग्रा की दर से - 19200 रुपए
चार महीने की कड़ी मेहनत के बाद किसान को मिला- 12500 रुपए। अर्थात चार बिगहा में उसे लगभग 50 हजार रुपए की कमाई होती है।  कमोबेश यही स्थिति धान की फसल का भी है। धान की फसल के लिए सस्ते मजदूरों की जरूरत होती है, लेकिन अब मजदूर भी नहीं मिलते हैं।
प्रधानमंत्री जी से अपील-
आर्थिक समस्या से निजात दिलाने के लिए किसान को खेती में छूट देनी होगी, फसल को बाजार से जोडऩा होगा और पशुपालन तथा पौधारोपण को भी बढ़ावा देना होगा। लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी अपने प्रत्येक भाषण में जोर देते थे कि किसान द्वारा खेत के मेढ़ पर पौधारोपण को बढ़ावा दिया जाए और उसे बेचने का भी अधिकार मिले, ताकि सरकारी बाबू उसे परेशान न करें और किसान को आर्थिक तंगी से राहत मिले। इसके अलावा खेती को बाजार से जोडऩे का विशेष प्रावधान किया जाए।

6 Comments:

At 27 September 2014 at 01:40 , Blogger अमित वर्मा said...

बहुत ही सटीक आकलन .....समय मिलने पर यह लिंक भी देखें http://www.udanti.com/2013/02/blog-post_4283.html?m=0

 
At 27 September 2014 at 08:29 , Blogger baliram singh said...

jarur padhunga.....kam se free hounga to dekhunga

 
At 27 September 2014 at 19:51 , Blogger अमित वर्मा said...

धन्यवाद !

 
At 28 September 2014 at 05:25 , Blogger baliram singh said...

website to dekh liya, but post open nahi ho raha hai....

 
At 1 October 2014 at 06:54 , Blogger अमित वर्मा said...

मैं ये लिंक आपके फेसबुक अकाउंट के मेल बॉक्स में दे रहा हूँ आशा है वहां से जरुर देख पायेगे।

 
At 1 October 2014 at 06:59 , Blogger baliram singh said...

ji dekha, bahut achchha laga,,, abhi pura padha nahi hue.....mai apne blog se link kar raha hue

 

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