मोदी के यूपी फतह के 10 कारक
बलिराम सिंह
1-लोकसभा चुनाव की तैयारी साल भर पहले ही माइक्रो (जमीनी स्तर पर) लेबल पर शुरू कर दी गई। इसी के तहत मोदी ने अपने सबसे विश्वस्त अमित शाह को यूपी भेजा, जिसने यूपी के मरणासन्न कार्यकत्र्ताओं को जुझारू बनाया
2-आचार संहिता लागू होने से पहले ही यूपी के विभिन्न इलाकों में कई रैलियों का आयोजन, रैलियों में स्टेज को स्थानीय संस्कृति से जोड़ा गया। वाराणसी में महादेव तो अयोध्या में भगवान राम की तस्वीर उकेरी गई। स्थानीय मुद्दों को खास तवज्जो दी गई
3-माया की सरकार से निजात पाने के लिए जनता ने अखिलेश में अपना भविष्य देखा, लेकिन अखिलेश यादव फिसड्डी साबित हुए। अखिलेश सरकार मुस्लिम-यादव गठबंधन से बाहर नहीं निकल सकी।
4-मुजफ्फरनगर दंगे का असर पश्चिम से पूरब तक प्रदेश में फैला, पश्चिम में जाट और जाटव दोनो नाराज, भाजपा ने इसे भुनाया
5-चुनाव के ऐन मौके पर आजम खान के बोल से बहुसंख्यक वर्ग को गहरा आघात लगा
6-बहुसंख्यक वर्ग के बजाय माया-मुलायम तुष्टीकरण की राजनीति करने लगे, माया खुद को मुस्लिमों का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने में जुट गईं, लेकिन दंगे के दौरान मुजफ्फरनगर न जाना मुस्लिमों को नागवार गुजरा। प्रदेश में सपा और केन्द्र में कांग्रेस सरकार होने के बावजूद सपा, बसपा और कांग्रेस तीनों दलों ने मोदी और भाजपा पर हमला किया। जिसका गलत संदेश गया। जनता अब मूर्ख नहीं है, सब समझती है।
7-नॉन यादव बैकवर्ड क्लास भी मुलायम सिंह से नाराज, यूपी मंत्रीमंडल में यादव, मुस्लिम और ठाकुरों का ही दबदबा, पूरब व मध्य में पटेलों ने मुलायम के अपेक्षा भाजपा को तवज्जो दिया
8-अन्य बैकवर्ड और अनुसूचित जाति का एक बड़ा तबका मोदी को अपने करीब पाया, मोदी का ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखना और चायवाले की दिलचस्प कहानी ग्रामीण से लेकर शहरी लोगों पर जादू की तरह चढ़ा
9-भाजपा के नाराज नेताओं को संबंधित क्षेत्र में प्रत्याशियों को जीताने की जिम्मेदारी दी गई, सुनियोजित तरीके से आला नेताओं को मध्य यूपी और पूर्वांचल में उतारा गया।
10-मोदी का मजबूत प्रचार तंत्र, गुजरात के विकास को यूपी के गांव-गांव तक पहुंचाना
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