Monday 22 December 2014

जंतर-मंतर -बिहार में जनता परिवार को लाभ तो यूपी नुकसान!


-यूपी में सपा से दूर है नॉन यादव ओबीसी
बलिराम सिंह, नई दिल्ली

लगभग दो दशक बाद जनता परिवार एक बार फिर मोदी सरकार को घेरने और खुद की जमीन को बचाने के लिए जंतर-मंतर पर एकजुट तो हो गए और महाधरना में काफी तादाद में भीड़ भी जुटा ली, लेकिन अब सौ टके का सवाल है कि अगले दो सालों के दौरान बिहार, यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव में यह भीड़ वोट में तब्दील हो पाएगी या नहीं!
इसे लेकर मेरे मन में दो ख्याल आ रहे हैं-बिहार में जनता परिवार एक बार फिर बाजी मार सकती है, लेकिन यूपी को लेकर मन में संशय है। मैंने अपने इस विचार को मध्य यूपी के निवासी और  समाजवादी पार्टी के धुर विरोधी और पटना में पांच साल तक रिपोर्टिंग करने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार राजेश तिवारी का भी मिजाज जाना तो उन्होंने भी मेरी बातों से सहमति जताई।
ऐसा क्यों आया ख्याल-
बिहार-

चूंकि गांव, गरीब, मजदूर, किसान, अल्पसंख्यक वर्ग की बात करने वाली दो धुर विरोधी पार्टियां एकजुट हो गई हैं और दोनों पार्टियों का लक्ष्य भी एक है-भाजपा का विरोध। राष्ट्रीय जनता दल के पास जहां वोट बैंक के तौर पर माई (मुस्लिम-यादव) जैसा एक बड़ा तबका है तो जनता दल यूनाइटेड के पास मुस्लिम, नॉन यादव बैकवर्ड, दलित और महादलित के अलावा उच्च वर्ग के लोग भी शामिल हैं। चूंकि बिहार में इस गठबंधन के पास नीतिश कुमार जैसे ट्रंप कार्ड हैं, जिनसे आज भी बिहार की जनता का लगाव है, यह दीगर बात है कि लोकसभा चुनाव में बिहार की जनता ने भाजपा को तवज्जो दिया, लेकिन अब भाजपा के ही तरकश से नीतिश कुमार भाजपा पर वार कर रहे हैं।
यूपी-
फिलहाल प्रदेश के चारों ओर भाजपा का लहर है। पश्चिमी यूपी मेंं उच्च वर्ग के अलावा जाट वर्ग भी भाजपा के पक्ष में हैं। प्रदेश के अन्य हिस्से में भी समाजवादी पार्टी की मौजूदा नीतियों से नॉन यादव ओबीसी वर्ग नाराज है। रही-सही कसर, मुलायम सिंह यादव द्वारा महिलाओं के खिलाफ दिए गए बयान से शहरी वर्ग में भी नाराजगी व्याप्त है। देश के सबसे बड़े प्रदेश में दोबारा सत्ता में आने के लिए सबसे पहले सपा को अपने कार्यकत्र्ताओं पर नकेल कसना होगा। रोजगार, महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों पर नई तकीनीकी के साथ मैदान में उतरना होगा, अन्यथा मुलायम सिंह यादव की यह कथनी एक बार फिर सही साबित होगी कि लैपटॉप सपा ने बांटा और लाभ ले गएं मोदी जी। साथ ही नॉन यादव ओबीसी के अलावा दलित वर्ग को जोडऩे के लिए प्रयास करना होगा, लेकिन मौजूदा स्थितियों से ऐसा लगता है कि सपा सरकार इसमें सफल नहीं होगी। तथा अन्य जनता परिवार से जुड़े अन्य घटक दलों की यूपी में जमीन भी नहीं है। रही बात बसपा सुप्रीमो मायावती की, तो उनका मुलायम सिंह के साथ आना दूर की कौड़ी लगती है।

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