Saturday, 31 May 2014

मुलायम ने 36 मंत्रियों को पैदल ही बाहर का रास्ता दिखाया

बलिराम सिंह
लोकसभा चुनाव में यूपी में समाजवादी पार्टी को करारी हार क्या मिली, सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त 36 मंत्रियों की कुर्सी छीन ली।
कुर्सी छीनने का तरीका भी कुछ अलग हट के था-इंडिया टुडे के मुताबिक हार के बाद आयोजित बैठक में मुलायम ने कहा-
तुम सबको यहां बैठने का हक नहीं है, फौरन बाहर निकल जाओ और ध्यान रखना कि अपने पैरों से ही जाना, बाहर खड़ी लालबत्ती की गाड़ी में बैठ भी मत जाना।

Wednesday, 28 May 2014

सोशल मीडिया बना नेताओं की लोकप्रियता का पैमाना



सोशल मीडिया पर देश के नेताओं की स्थिति
नरेन्द्र मोदी-
ट्विटर - 35.50 लाख फॉलोअर्स
फेसबुक - 114.12 लाख लाइक्स
मनमोहन सिंह-
ट्विटर - 11.30 लाख फॉलोअर्स
अरविंद केजरीवाल-ट्विटर- 14.90 लाख फॉलोअर्स
फेसबुक- 46.42 लाख लाइक्स
अखिलेश यादव- टिवटर - 46.70 हजार फॉलोअर्स
फेसबुक- 4.50 लाख लाइक्स
ममता बनर्जी-फेसबुक - 6.44 लाख लाइक्स
नीतीश कुमार-
टिवटर - 25.3 हजार फॉलोअर्स
फेसबुक-1.98 लाख लाइक्स
अजय माकन-टिवटर - 2.69 लाख फॉलोअर्स
फेसबुक-2.21 लाख लाइक्स
नोट- यह आंकड़ा दो महीने पहले का है।

Saturday, 24 May 2014

मोदी के यूपी फतह के 10 कारक


बलिराम सिंह

1-लोकसभा चुनाव की तैयारी साल भर पहले ही माइक्रो (जमीनी स्तर पर) लेबल पर शुरू कर दी गई। इसी के तहत मोदी ने अपने सबसे विश्वस्त अमित शाह को यूपी भेजा, जिसने यूपी के मरणासन्न कार्यकत्र्ताओं को जुझारू बनाया 
2-आचार संहिता लागू होने से पहले ही यूपी के विभिन्न इलाकों में कई रैलियों का आयोजन, रैलियों में स्टेज को स्थानीय संस्कृति से जोड़ा गया। वाराणसी में महादेव तो अयोध्या में भगवान राम की तस्वीर उकेरी गई। स्थानीय मुद्दों को खास तवज्जो दी गई
3-माया की सरकार से निजात पाने के लिए जनता ने अखिलेश में अपना भविष्य देखा, लेकिन अखिलेश यादव फिसड्डी साबित हुए। अखिलेश सरकार मुस्लिम-यादव गठबंधन से बाहर नहीं निकल सकी।
4-मुजफ्फरनगर दंगे का असर पश्चिम से पूरब तक प्रदेश में फैला, पश्चिम में जाट और जाटव दोनो नाराज, भाजपा ने इसे भुनाया
5-चुनाव के ऐन मौके पर आजम खान के बोल से बहुसंख्यक वर्ग को गहरा आघात लगा
6-बहुसंख्यक वर्ग के बजाय माया-मुलायम तुष्टीकरण की राजनीति करने लगे, माया खुद को मुस्लिमों का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने में जुट गईं, लेकिन दंगे के दौरान मुजफ्फरनगर न जाना मुस्लिमों को नागवार गुजरा। प्रदेश में सपा और केन्द्र में कांग्रेस सरकार होने के बावजूद सपा, बसपा और कांग्रेस तीनों दलों ने मोदी और भाजपा पर हमला किया। जिसका गलत संदेश गया। जनता अब मूर्ख नहीं है, सब समझती है।
7-नॉन यादव बैकवर्ड क्लास भी मुलायम सिंह से नाराज, यूपी मंत्रीमंडल में यादव, मुस्लिम और ठाकुरों का ही दबदबा, पूरब व मध्य में पटेलों ने मुलायम के अपेक्षा भाजपा को तवज्जो दिया
8-अन्य बैकवर्ड और अनुसूचित जाति का एक बड़ा तबका मोदी को अपने करीब पाया, मोदी का ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखना  और चायवाले की दिलचस्प कहानी ग्रामीण से लेकर शहरी लोगों पर जादू की तरह चढ़ा
9-भाजपा के नाराज नेताओं को संबंधित क्षेत्र में प्रत्याशियों को जीताने की जिम्मेदारी दी गई, सुनियोजित तरीके से आला नेताओं को मध्य यूपी और पूर्वांचल में उतारा गया।
10-मोदी का मजबूत प्रचार तंत्र, गुजरात के विकास को यूपी के गांव-गांव तक पहुंचाना

Thursday, 22 May 2014

इन 10 वजहों से शिकस्त खा गए नीतीश कुमार

बलिराम सिंह
1-कैडर की कमजोरी, बिहार के विकास पर गुजरात का विकास भारी पड़ा
2-लव-कुश गठबंधन में फूट
3-मुस्लिमों का सहयोग न मिलना 
4-महादलित वोटों का बिखराव
5-प्रवक्ताओं का अकाल, जरूरत से ज्यादा मोदी के खिलाफ प्रवक्ताओं द्वारा अपशब्द का उपयोग
6-गठबंधन टूटने के बाद अपनी बात को ठीक ढंग से नहीं रख पाना, चुनाव में माइक्रो मैनेजमेंट का अभाव दिखा
7-नरेन्द्र मोदी की पटना रैली में हुए बम विस्फोट से जनता में भारी नाराजगी
8-अपर क्लास का नीतीश कुमार से दूर जाना
9-मीडिया ने असली लड़ाई मोदी बनाम लालू कर दिया
10-देश में ऐसा संदेश जाना कि नीतीश कुमार मुसलमानों के प्रति कुछ ज्यादा ही फिक्रमंद हैं।

Wednesday, 21 May 2014

अपना दल के घर में मोदी आगे, अपने घर में पीछे


-भाजपा के गढ़ में मिले एक लाख से कम वोट
बलिराम सिंह
सोचिए जरा, यदि वाराणसी से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की जीत का मार्जिन काफी कम होता, यदि अपना दल जैसी क्षेत्रीय पार्टी का गठबंधन भाजपा के साथ नहीं होता, तो विरोधी दल सहित मीडिया नरेन्द्र मोदी के खिलाफ किस तरह से हमलावार होते! चुनाव से पहले भारत सहित विदेशी एजेंसियों की नजरें वाराणसी पर टिकी हुई थीं। सभी विपक्षी पार्टियां नरेन्द्र मोदी को पटखनी देने के लिए दल-बल सहित वाराणसी में डेरा डाल दी थी, बावजूद इसके नरेन्द्र मोदी अपने विपक्षियों पर पौने चार लाख वोटों से भारी पड़े।
वाराणसी में चुनाव के दौरान नरेन्द्र मोदी पर चौतरफा हमला के दौरान अपना दल के कार्यकत्र्ता मोदी के साथ खड़े रहे। मजे की बात यह है कि भाजपा का गढ़ कहा जाने वाला दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को एक लाख से भी कम वोट मिले थे। यहां से भाजपा के विधायक सातवीं बार जीते हैं। दूसरी ओर रोहनिया और सेवापुरी जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में मोदी को दो लाख से ज्यादा वोट मिलें। इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों में अपना दल का वर्चस्व है और इनमें से रोहनिया सीट पर अपना दल का कब्जा है और दूसरी सीट सेवापुरी पर भी पटेल बहुल इलाका है। फिलहाल यहां से सपा के सुरेन्द्र सिंह पटेल विधायक हैं और प्रदेश में लोक निर्माण राज्य मंत्री हैं।   अपना दल का यहां भी अच्छा खासा दबदबा है।
बता दें कि लोकसभा चुनाव में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने वाराणसी से चुनाव लड़ा। इनके अलावा कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी अजय राय को जीताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। मुस्लिम मतदाताओं का वोट न बंटे, इसके लिए बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी ने वाराणसी से चुनाव नहीं लड़ा। बावजूद इसके नरेन्द्र मोदी को यहां पर 581022 वोट मिले और उन्होंने अपने निकटम प्रतिद्वंदी अरविंद केजरीवाल को 371784 वोटों से पटखनी दी।
विधानसभा वार मोदी को मिले वोट-
कैंट          - 137557
रोहिनया        - 119048
नार्थ           -119000
सेवापुरी         -104803
दक्षिणी         - 98058
चुनाव में प्रत्याशियों को मिले वोट-
नरेन्द्र मोदी  (भाजपा )     - 581022
अरविंद केजरीवाल (आप)    -209238
अजय राय  (कांग्रेस)       -75614
विजय प्रकाश जायसवाल (बसपा)- 60579
कैलाश चौरसिया  (सपा)    - 45291

Monday, 19 May 2014

आजमगढ़ नहीं छोड़ेंगे मुलायम सिंह यादव!

बलिराम सिंह-
काफी कसरत के बाद आजमगढ़ में साइकिल तो दौड़ गई, लेकिन उपचुनाव में यहां से दोबारा जीत हासिल करना समाजवादी पार्टी के लिए टेढ़ी खीर है। प्रदेश का पूरा प्रशासनिक तंत्र आजमगढ़ में मौजूद होने के बावजूद यहां पर मुलायम सिंह की जीत का अंतर मात्र 63 हजार है। ऐसे में रानीतिक पंडितों की माने तो उपचुनाव में यहां पर सपा शिकस्त खा सकती है। अत: मुलायम सिंह आजमगढ़ के बजाय मैनपुरी सीट को छोडऩा ज्यादा पसंद करेंगे।
आंकड़ों पर गौर करें तो मुलायम सिंह यादव को आजमगढ़ सदर लोकसभा क्षेत्र की पांच विधानसभा क्षेत्रों में से सबसे ज्यादा नुकसान पटेल बहुल सगड़ी विधानसभा क्षेत्र में हुआ है। यूपी कैबिनेट में पटेलों (मात्र तीन मंत्री- एक स्वतंत्र प्रभार, एक कैबिनेट और एक राज्य मंत्री) को नजरअंदाज करना महंगा पड़ा। मजे की बात यह है कि इस सीट से सपा के अभय सिंह पटेल विधायक हैं, बावजूद इसके यहां पर मुलायम सिंह को मात्र 57 हजार के करीब वोट मिले, जबकि रामाकांत यादव को यहां मुलायम सिंह के अपेक्षा महज 1800 वोट कम मिले। हालांकि सदर जैसी सर्वण बहुल सीट पर मुलायम सिंह को 81689 वोट प्राप्त हुए और यहां पर उनकी जीत का मार्जिन काफी ज्यादा था। इसके अलावा सपा को मुबारकपुर विधानसभा क्षेत्र में 70 हजार, गोपालपुर में 67 हजार और मेहनगर में 63 हजार वोट मिले।
आजमगढ़ में सपा सुप्रीमो को कुल 340306 वोट मिलें, जबकि भाजपा के रामाकांत यादव को 277102, बसपा के गुड्डु जमाली को 266528 और कांग्रेस को मात्र 17950 मत मिले। बटला कांड के बाद अस्तित्व में आयी राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के प्रत्याशी एम. आमीर रशदी को महज 13271 वोट मिले।
आजमगढ़ में उतर आयी थी यूपी सरकार-
मुलायम सिंह यादव को भारी मतों से जीत दिलाने के लिए जिले के कद्दावर नेता बलराम सिंह यादव, दुर्गा यादव के अलावा प्रदेश के तमाम मंत्रियों, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, शिवपाल सिंह यादव सहित तमाम नेता कई दिनों तक चुनाव प्रचार में जुटे रहें, बावजूद इसके जीत का अंतर काफी कम रहा।
क्यों नहीं छोड़ेंगे आजमगढ़-
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यदि मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ की सीट को छोड़ते हैं तो उपचुनाव में यह सीट भी भाजपा के खाते में जा सकती है। ऐसे में सपा सुप्रीमो अपनी पुरानी और सुरक्षित मानी जाने वाली मैनपुरी लोकसभा सीट को छोड़ सकते हैं, जहां पर सपा प्रत्याशी को जीत हासिल करना आसान होगा।
सैफई बनेगा आजमगढ़-
अब देखना यह है कि क्या वाकई आजमगढ़ सैफई बनेगा या केवल चुनाव के दौरान सपा सुप्रीमों को जीत दिलाने के लिए सपा के आला नेता हवाई वादे कर रहे थें, ये तो आने वाला वक्त बताएगा। देश में सदैव सुर्खियों में रहने वाला आजमगढ़ बाढ़, बेरोजगारी, बुनियादी सुविधाओं जैसी समस्याओं से जूझ रहा है।
आजमगढ़ के  भाजपा नेता घनश्याम पटेल का कहना है कि चुनाव में मुलायम सिंह यादव को जीत दिलाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद सभी नीतियां अपनायी गईं। अब हमलोगों की यही मांग है कि मुलायम सिंह और उनके सिपहसलारों ने आजमगढ़ के विकास के लिए जो वायदा किया था, उसे पूरा करके दिखाएं।

Sunday, 11 May 2014

मुख्तार के लिए बंजर रही है वाराणसी की जमीन


-गाजीपुर, मऊ, बलिया में कांटे की टक्कर
बलिराम सिंह
चुनाव अपने अंतिम चरण में है और महज 100 घंटे बाद चुनावी परिणाम सामने आ जाएगा। मीडिया के लिए वाराणसी टीआरपी का मुख्य स्रोत हो गया है। वाराणसी को लेकर रोजाना मीडिया नयी-नयी कहानियां गढऩे को तैयार है। भाजपा प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कभी अजय राय तो कभी अरविंद केजरीवाल को अखाड़े का मुख्य प्रतिदंवदी बताया जा रहा है। लेकिन इनमें भी सर्वाधिक सुर्खियां बंटोरी बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी ने ।
लेकिन जब मुख्तार अंसारी की जमीनी हकीकत पर नजर डालें तो स्थितियां कुछ अलग बयां करती हैं। भले ही अंसारी बंधुओं को गाजीपुर और घोसी में अच्छे वोट मिले हों, लेकिन वाराणसी में मुख्तार की जमीन बंजर है। चाहे 2012 का विधानसभा चुनाव हो या
2009 का लोकसभा चुनाव। मुख्तार को वाराणसी में जीत हासिल नहीं हुई।
चूंकि लोकसभा चुनाव में मुख्तार बसपा प्रत्याशी के तौर पर वाराणसी से चुनाव लड़े थे। ऐसे में उन्हें बसपा वोटर के अलावा मुस्लिम वोट थोक के भाव मिले थे और चुनाव में मात्र 17211 वोटों से हारे थे। लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल और सुहलदेव भारत समाज पार्टी के गठबंधन को वाराणसी की सात सीटों पर महज 64183 वोट मिले थे। इसके विपरीत इस गठबंधन ने मऊ, गाजीपुर और बलिया जिले में विपक्षी पार्टियों को जबरदस्त टक्कर दी और दो सीटों पर जीत भी हासिल की और 6  सीटों पर 30-30  हजार से ज्यादा वोट प्राप्त किए।

वाराणसी -
कैंट-     5366
नार्थ-     4709
साउथ- 20454
अजगरा- 5312
पिंडरा-   3321
सेवापुरी-9883
रोहनिया-16138
कुल वोट- 64183