Monday 19 September 2016

थाल सजाकर किसे पूजने चले प्रात: ही मतवाले, कहां चले तुम रामनाम का पीतांबर तन पर डाले।



बलिराम सिंह
चितौड़गढ़ की रानी पद्यमावती और अलाउद्दीन खिलजी का प्रसंग यदि आपको याद हो तो राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत यह कविता वास्तव में हमारे रोंगटे खड़े कर देती है। रविवार को कश्मीर के उरी सेक्टर में शहीद हुए हमारे 17 जवानों की याद में यह कविता अचानक जुबां पे आ गई।
थाल सजाकर किसे पूजने चले प्रात: ही मतवाले
कहां चले तुम रामनाम का पीतांबर तन पर डाले।
इधर प्रयाग न गंगा सागर, इधर न रामेश्वर काशी,
इधर कहां है तीर्थ तुम्हारा, कहां चले तुम सन्यासी।
चले झुमते मस्ती से क्या तुम अपना पथ आये भूल,
कहां तुम्हारा दीप जलेगा, कहां चढ़ेगा माला-फूल।
मुझे न जाना गंगा सागर, मुझे न रामेश्वर काशी,
तीर्थराज चितौड़ देखने को मेरी आंखें प्यासी।
अपने अटल स्वतंत्र दुर्ग पर सुनकर वैरी की बोली,
निकल पड़ी लेकर तलवारें जहां जवानों की टोली।
जहां आन पर मां बहनों ने जल जला पावन होली,
वीर मंडली गर्वित स्वर में जय मां की जय-जय बोली।
सुंदरियों ने जहां देश हित जौहर व्रत करना सीखा,
स्वतंत्रता के लिए जहां बच्चों ने भी मरना सीखा।
वहीं जा रहा हूं पूजा करने, लेने सतियों की पद धूल,
वहीं हमारा दीप जलेगा, वहीं चढ़ेगा माला, फूल।
जहां पद्ममिनी जौहर व्रत करती चढ़ी चिता की ज्वाला पर,  
क्षण भर वही समाधि लगी बैठ इसी मृग छाला पर ।
(श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित )

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2 Comments:

At 13 January 2019 at 23:48 , Blogger Unknown said...

Very nice poem

 
At 14 June 2020 at 12:17 , Blogger Unknown said...

Is kavita ka pura arth bhi batiye

 

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