#Ayodhya: अधूरे ख्वाब के साथ अलविदा हो गए चचा हाशिम अंसारी
-अयोध्या विवाद का हल चाहते थें अंसारी
नई दिल्ली
अयोध्या, बाबरी मस्जिद’ के पैरोकार हाशिम अंसारी बुधवार सुबह साढ़े पांच बजे इस
दुनियां से रूख़स्त हो गये। वे 96 वर्ष के थे और कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे। थोड़े
दिनों पूर्व उन्होने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ़ की थी। वैसे हाशिम अंसारी
बाबरी मस्जिद के पैरोकार थें, लेकिन वह अपने जीते-जी राम मंदिर और मस्जिद दोनों का
निर्माण चाहते थें।
इनके पिता का नाम करीम बख्श था। राम जन्मभूमि
का मुकदमा 1949 में इन्होंने खुद दायर किया था। इनके परिवार में एक लड़का और 1 बेटी
है। बेटा इक़बाल ऑटो चलाकर घर का खर्चा चलाता था। रामजन्मभूमि बाबरी आंदोलन में इनकी
अहम भूमिका रही है। समझौते को लेकर ये काफी अहम भूमिका निभा रहे थे। मोदीजी की भी काफी
तारीफ करते थे।
हाशिम अंसारी का अपने जीवनकाल में अयोध्या में राम मंदिर के साथ मस्जिद निर्माण
का सपना अधूरा रह गया। भले ही अयोध्या मामले का नाम आने पर उन्हें मुस्लिम पक्ष का
पैरोकार होने की वजह से एक सम्प्रदाय का प्रतिनिधि माना जाए, लेकिन हाशिम ने कभी भी
अयोध्या में राम मंदिर न बनाए जाने का समर्थन नहीं किया था, बल्कि उनकी इच्छा यही थी
कि विवादित स्थल पर सरकारी जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों बनाए जाएं। चचा नाम से प्रख्यात
हाशिम अपने कमजोर शरीर, बुलंद आवाज़ और ऊंचा सुनने के बावजूद अपनी राय बेबाक तरीके से
रखते थे। उन्होंने खुलकर प्रदेश और देश के लगभग सभी मुस्लिम राजनेताओं की आलोचना भी
की। उनका मानना था कि यदि दोनों पक्षों की ओर से समझदारी दिखाई जाए तो इस मुद्दे का
हल निकलना मुश्किल नहीं है।
कुछ महीनों पहले उन्होंने कहा था कि वे रामलला को आज़ाद देखना चाहते हैं और यह भी
चाहते हैं कि विवादित स्थल पर राम मंदिर बने, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि मुस्लिम
हित को अनदेखा किया जाए। उन्होंने इस बात पर निराशा जताई थी कि 'लोग महल में रहें और
भगवान राम अस्थाई तम्बू के नीचे।'
मुकदमे में वादी होने के बावजूद अयोध्या शहर में सभी लोग उनकी इज्ज़त करते थे क्योंकि
उनके स्वभाव में कभी सांप्रदायिक भेदभाव नजर नहीं आता था। खास बात यह है कि कभी इस
मामले की सुनवाई के दौरान हाशिम और हिन्दू पक्ष के पैरोकार महंत राम केवल दास और महंत
राम चन्द्र परमहंस रिक्शे पर बैठ कर एक साथ कोर्ट जाते थे।
अंसारी के पुत्र इकबाल ने कहा है कि पैगम्बर जनाबे शीश की मजार के पास स्थित कब्रिस्तान
में उनको सुपुर्द-ए-खाक किया जायेगा।
1949 से लड़ रहे थें केस-
1921 में पैदा हुए
हाशिम अंसारी ने 22 दिसंबर 1949 में पहली बार इस मामले में एक मुकदमा दर्ज करवाया था,
जब विवादिद ढांचे के भीतर कथित रूप से मूर्तियां रखी गई थीं, उनका कहना था कि लोगों
के कहने के कारण ही उन्होंने ऐसा किया था।
गौरतलब है कि 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस मामले में एक केस किया तब भी हाशिम
अंसारी एक और पैरोकार बने।
इमरजेंसी में भी जेल में थे अंसारी-
1975 में
जब देश में इमरजेंसी लगाई गई थी तब भी हाशिम अंसारी को गिरफ्तार किया गया था और करीब
8 महीने वह जेल में रहे।Labels: Ayodhya, Babri Masjid Case, Hashim Ansari, Mahant Ramchandra Das, Oldest Litigant, Ram Temple, Sunni Waqf Board
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home